सामाजिक न्याय संबंधी विषयों को लेकर हमेशा चर्चा में रहने वाले तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने एक गंभीर मुद्दा उठा दिया है।

एक कार्यक्रम में बोलते हुए स्टालिन ने कहा कि जजों की नियुक्ति में सभी वर्गों के लोगों को भागीदारी होना चाहिए।

स्टालिन के इस बयान के कई मायने निकाले जा सकते हैं, न्यायपालिका में एक खास जाति ‘ब्राह्मण’ के वर्चस्व पर सवाल उठ सकते हैं। कहा जा रहा है कि इस बयान के नतीजे दूरगामी दृष्टि से असरदार हो सकते हैं।

संयुक्त न्यायालय भवन के शिलान्यास करते हुए एम के स्टालिन ने कई महत्वपूर्ण बातें कही।

स्टालिन ने कहा कि तमिल को मद्रास हाईकोर्ट की भाषा बनाया जाना चाहिए। साथ ही उन्होंने चैन्नई में सुप्रीम कोर्ट की बेंच की भी मांग की।

जजों की नियुक्ति में सभी वर्गों की बात कहकर स्टालिन ने एक ऐसा मुद्दा छेड़ दिया है जिसे लेकर न्यायपालिका पर पहले से आरोप लगते रहे हैं।

कई मौकों पर तमाम चिंतकों और स्तंभकारों ने लिखा है कि न्यायपालिका में एक वर्ग विशेष का कब्ज़ा बना हुआ है, जिसका असर तमाम फ़ैसलों पर पड़ता है।

इसी तरह एक ही परिवार के लोगों का पीढ़ी दर पीढ़ी न्यायपालिका में होना भी सही नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट के कॉलोजियम की भी आलोचना होती रही है, जहां जज ही जज को चुनते हैं। एक ही जाति के जज अपने बेटे, भतीजे या जाति के किसी व्यक्ति को चुनते हैं। ऐसे में कहा जाता है कि तमाम वर्गों का प्रतिनिधित्व न्यायपालिका से गायब है।

स्टालिन ने दक्षिण भारत के लोगों के लिए चेन्नई में सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच बनाए जाने की मांग की है, उन्होंने कहा कि ये बहुत ज़रूरी है क्योंकि तमिलनाडु के लोगों को दिल्ली आने जाने में परेशानी होती है। मुझे उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट के जज मेरी मांग पर विचार करेंगे।

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