शुभम सिंह

रेप की घटनाओं को रोकने के लिये आम नागरिक का क्या दायित्व है, और लोग अभी भी क्यों जाग नहीं रहे, वो तो चर्चा का विषय है, लेकिन इसको लेकर सरकार क्या कर रही वो देखिए।
2012 में दिल्ली में चलती बस में गैंगरेप की घटना के बाद यूपीए सरकार ने महिला सुरक्षा को लेकर निर्भया फंड बनाया। मनमोहन सिंह की सरकार ने 2013 के बजट में निर्भया फंड की घोषणा की। उस समय के वित्त मंत्री रहे पी चिदंबरम ने शुरुआती तौर पर 1000 करोड़ का आवंटन भी किया। उसके बाद 2014-15 और 2016-17 में एक-एक हजार करोड़ और आवंटित किए गए।

अब लोकसभा में 29 नवंबर को महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने निर्भया फंड के खर्च का ब्योरा दिया।

निर्भया फंड के तहत केंद्र ने राज्यों को 1,672 करो़ड़ रुपये का फंड दिया था, जिसमें कुल 147 करोड़ रुपये ही खर्च किए गये हैं। यानी निर्भया फंड के नाम पर मिला 91 प्रतिशत रुपया खर्च ही नहीं किया गया है।

स्मृति ईरानी के दिये आंकड़ों के अनुसार महाराष्ट्र सरकार ने केंद्र द्वारा दिए निर्भया फंड से एक भी पैसा खर्च नहीं किया। जबकि महाराष्ट्र को निर्भया फंड द्वारा 130 करोड़ रुपये प्रदान किये गये थे। लेकिन फडणवीस सरकार ने निर्भया फंड का एक भी रुपया नहीं खर्च नहीं किया। केवल महाराष्ट्र ही नहीं बल्कि मणिपुर, मेघालय, सिक्किम, त्रिपुरा के अलावा दमन और दीव की सरकारे भी इस फंड का एक ढेला भी नहीं खर्च कर सकीं।
अगर बात करे उत्तर प्रदेश की तो रामराज्य लाने के लिये संकल्पित योगी सरकार ने 119 करोड़ रुपये में से केवल छह करोड़ रुपये खर्च किए।

तेलंगाना(जहां से हाल ही में अभी रेप की घटना सामने आयी है) ने 103 करोड़ रुपये में से केवल चार करोड़ खर्च किए हैं। बिहार को 22 करोड़ रुपये आवंटित हुए थे जिसमें से नीतीश कुमार की सरकार ने सात करोड़ रुपये खर्च किये।

सभी राज्यों ने नहीं बनाया हेल्पलाइन नंबर

36 में से केवल 20 (राज्यों और केंद्रशासित प्रदेश) ने ही महिला हेल्पलाइन बनाने में पैसे खर्च किए हैं। महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, झारखंड, राजस्थान, पश्चिम बंगाल और गोवा जैसे राज्यों ने महिला हेल्पलाइन के लिए आवंटित राशि को खर्च नहीं किये।

राजधानी दिल्ली में भी स्थिति निराशाजनक है। दिल्ली सरकार को इसके लिये 50 लाख रुपये आवंटित किये गये थे। लेकिन उसने इस फंड से एक रुपया भी खर्च नहीं किया।

जानें- निर्भया फंड क्या है और क्यो दिया जाता है

16 दिसंबर 2012 को दिल्ली में एक गैंग रेप हुआ था जिसके विरोध में देश विदेश में आवाज़ें उठी थीं। इसके खिलाफ लोगों ने जमकर विरोध प्रदर्शन किया और सरकार से महिलाओं की सुरक्षा के उचित प्रबंध करने की मांग रखी। इसके बाद केंद्र सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा बढ़ाने के लिए निर्भया फंड की स्‍थापना की थी।

निर्भया फंड का मुख्य उद्देश्य लड़कियों और महिलाओं की सुरक्षा करना था ताकि उनके प्रति अपराध को रोका जा सके।
सरकार ने 660 एकीकृत वन स्टॉप सेंटर बनाने की योजना भी बनाई थी। जिसका उद्देश्य था पीड़िताओं को कानूनी और आर्थिक मदद प्रदान कराना। निर्भया फंड के अंतर्गत सार्वजनिक स्थानों पर सीसीटीवी कैमरे लगाने की भी योजना बनाई गयी थी।

फंड खर्च करने में क्या दिक्क़त आती है

निर्भया फंड खर्च नहीं कर पाने में सबसे बड़ी दिक्क़त देश में एकीकृत प्रणाली का अभाव होना है। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार निर्भया फंड तीन मंत्रालयों से जुड़ा है। गृह मंत्रालय, वित्त मंत्रालय और महिला एवं विकास मंत्रालय। इन तीनों के बीच आपस में समन्वय नहीं बैठा पाने के कारण दिक़्कतें आती हैं। पिछले 6 साल से इस फंड को खर्च करने के मामले में राज्य सरकारे कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं बना पायी हैं।

(शुभम सिंह एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। लेख में व्यक्त किए गए विचार और दिए गए आंकड़े उनके निजी अनुभव और अध्ययन पर आधारित हैं। )

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