इस देश के मजदूर-
केमिकल का छिड़काव हुआ, तो सह गए,
सैंकड़ों किलोमीटर पैदल चलना पड़ा, तो सह गए,
पुलिस ने पीटा, तो पिट लिए।
भूखे रहना पड़ा, तो रह लिए,
लाइन में लगना पड़ा, तो लग लिए।
पूरी दुनिया में इतने असहाय मजदूर वर्ग नहीं है जितने भारत में हैं। लेकिन कामगारों की इसी सुषुप्त धरती पर भी शानदार क्रांति की फसल उगाई जा सकती है।
मजदूरों का आंदोलन उग्र हाथों से छुटाकर मेहनती हाथों में पहुंचना चाहिए। वर्तमान के सभी वामपंथी नेता इन मजदूरों के अपराधी हैं जो उग्र तो हैं मगर माइकों पर, या फिर कैमरे पर। हंसिए और लाल रंग का झंडा थके हुए हाथों में हैं, जिनमें लड़ने का सामर्थ्य नहीं।
जितने भी जुल्म हो रहे हैं मजदूरों पर, वे सब एक बड़े आंदोलन के लिए ईंधन का काम कर सकते हैं, जिसकी आग में प्रधानमंत्री का अभिमान ही नहीं उनकी कुर्सी भी जल सकती है।
आज अन्ना आंदोलन से भी बड़ा आंदोलन खड़ा किया जा सकता है। लेकिन आज कोई नेता नहीं है, कोई संगठन और पार्टी नहीं है जो सड़क पर बिस्तर डालकर देश की संसद से हिसाब ले सके।