वैश्विक महामारी कोरोना ने पुरे विश्व में हाहाकार मचा रखा है भारत जैसे विशाल आबादी वाला देश लाख कोशिशों के बावजूद भी इससे अछूता नहीं रह पाया और लॉकडाउन जैसी प्रतिबद्धता के बावजूद आज विश्व भर में तीसरे स्थान पर पहुँच गया है और लगभग 20 लाख लोग इससे प्रभावित हो चुके है यानि कोरोना संक्रमित( पॉजिटिव) हो चुके है और ,रोजाना यह आंकड़ा 50 हजार प्रतिदिन के रफ़्तार से तेजी से बढ़ रहा है।

केंद्र सरकार और अन्य राज्यों की सरकारें अपने स्तर से इस वैश्विक महामारी से लड़ने का भरसक प्रयास कर रही है परंतु बिहार एक ऐसा राज्य है जो हालात से लाचार है और व्यवस्था से बीमार है , लगभग 13 करोड़ की आबादी वाला बिहार प्रदेश इस महामारी के प्रकोप से बेबस नजर आ रहा है।

जहाँ सरकार अपनी नाकामियों को छुपाने के लिए बीच युद्ध में अपने सेनापतियों को बार-बार बदल रही है। विगत दिनों स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव को अचानक हटा दिया गया वैसे ही आज एक बार फिर एक महीने के अंदर पुनः प्रधान सचिव महोदय की छुट्टी कर दी गयी यही नही बिहार के सबसे पहले डेडिकेटेड कोविड अस्पताल एनएमसीएच के अधीक्षकों की भी अबतक दो बार छुट्टी की जा चुकी है।

सवाल उठना लाजमी है कि क्या अधिकारियों और अधीक्षकों को हटा देने से व्यवस्था दुरुस्त हो जाएगी या लीपापोती और अपनी नाकामी छुपाने के लिए सरकार द्वारा इन अधिकारियों और अधीक्षकों को ढाल बनाया जा रहा है ।

दरअसल बात अधिकारियों के कुशलता, काबलियत या अक्षमता की नही बल्कि बीमार व्यवस्था की है । बिहार में लगभग 11645 डॉक्टरों के सैंक्शन पोस्ट में 8768 पोस्ट खाली है , बिहार के अस्पतालों में मात्र 2877 डॉक्टर अभी काम कर रहें हैं। जिसमे से लगभग 1000 से ऊपर डॉ अस्पताल भी नही जा रहे हैं।

अभी कुछ दिन पहले ही बिहार कैबिनेट के बैठक में कुछ डॉक्टरों को सेवा से हटाया है जो 2001 से अबतक अस्पताल नही जा रहे थे। बिना प्रर्याप्त डॉक्टरों के बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था भगवान भरोसे ही चल रही है। जिस अनुपात में चिकित्सकों का अभाव है उसी अनुपात में नर्स, पैरामेडिकल स्टाफ, लैब टेक्नीशियन एवं अन्य कर्मचारियों का अभाव है।

यह तो बात हो गयी मानव संसाधन के अनुपलब्धता की अब बात करते है बिहार के अस्पतालों में मूलभूत सुविधा और दवाईयों के घोर अभाव की बिहार के जिला अस्पतालों में कोविड -19 से लड़ने के लिए की गई व्यवस्था का अंदाजा केवल इस बात से लगा लीजिए कि अस्पताल के कर्मचारियों पीपीई किट नही दिया गया है जिस कारण विभिन्न जिलों के लगभग आधे स्वास्थ्य कर्मचारी खुद कोरोना से संक्रमित हो गए बिहार के सारण प्रमंडल के तीनों ज़िले के सिविल सर्जन , पटना के सिविल सर्जन सहित पूरे सूबे के कई उपाधीक्षक, अन्य कनीय और वरीय पदाधिकारी और कर्मचारी कोरोना के चपेट में आ गये हैं। वैसे विगत दिनों समस्तीपुर के सिविल सर्जन की मौत पटना के एम्स अस्पताल में हो गई थी।

यह सरकार की लाचारी और नाकामी का ही नतीजा है कि युद्ध के लिए सैनिकों को बिना सुरक्षा कवच और हथियार के ही युद्ध मे भेज दिया गया नतीजन योद्धा स्वयं ही इसका शिकार हो गए ।

दिन प्रतिदिन बिहार में कोरोना संक्रमितों की संख्या बढ़ रही है आबादी के अनुपात में टेस्टिंग नही होना भी एक बहुत बड़ी नाकामयाबी है वर्तमान सरकार की आपको जान कर आश्चर्य होगा की 13 करोड़ की आबादी वाले बिहार में अबतक मात्र 486835 टेस्ट हुए है और प्रतिदिन औसतन 16000 टेस्ट ही हो रहा है जो आबादी के अनुसार बहुत कम है। बिहार में अभी राजग(भाजपा+जदयू) गठबंधन की सरकार है जिसके मुख्य घटक दल कोरोना से कम और चुनाव लड़ने के लिए ज्यादा बेताब है और प्रतिदिन वर्चुअल रैली एवं कार्यकर्ता सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है और आगामी विधानसभा के चुनाव की तैयारी जोरों पर है ।

बिहार की हालत और भी लाचार है क्योंकि बिहार दोहरी आपदा झेल रहा है उत्तर बिहार के लगभग 12 जिले भयंकर बाढ़ की चपेट में है जिससे लगभग 50 लाख की आबादी प्रभावित है और दोहरी त्रासदी झेल रही है। इस विषम परिस्थिति में बिहार में चुनाव कराना बेहद ही गलत निर्णय होगा ।लोकतंत्र में ‘लोक’ की स्थिति दयनीय है और इसलिए चुनाव से पहले लोगों के जान-माल की सुरक्षा का प्रयास होना चाहिए। निर्वाचन आयोग को ऐसे विभिन्न पहलुओं पर विचार करना चाहिए क्योंकि इस विषम परिस्थिति में चुनाव कराना उपयुक्त नहीं है। राजनीतिक दलों को मनभेद और मतभेद दोनों भुला कर एक साथ चुनाव का विरोध करना चाहिए और एक मंच से एक साथ मिलकर बिहार में आयी दोहरी आपदा से लड़ना चाहिए ।

साथ ही बिहार के माननीय मुख्यमंत्री को सर्वदलीय बैठक बुलाकर एक समन्वय समिति बनाना चाहिए जो इस विषम परिस्थिति में एकजुट होकर बिहार के जनता के लिए काम कर सके जो कि लोकतंत्र के मजबूती और भविष्य के लिए सुखद होगा। लोकतंत्र लोगों का लोगो से लोगों के लिए है। लोकहित में अभी चुनाव की जरूरत नही है एवं एक ईमानदार प्रयास किया जाए जो देश को एक संदेश दे सके कि बिहार राजनीतिक चेतना वाला प्रदेश है जो हर विषम परिस्थितियों में भी अपने सकारात्मक प्रयासों से देश के मानस पटल पर एक अमिट छाप छोड़ सकता है। अंत मे विश्व भर के कोरोना योद्धाओं को कवि दिनकर की चंद पंक्तियां समर्पित।

दुखी स्वयं जग का दुःख लेकर,
स्वयं रिक्त सब को सुख देकर,
जिनका दिया अमृत जग पीता,
कालकूट उनका आहार ,
नमन उन्हें मेरा शत बार ।

राजेश चन्द्रा
शोधार्थी
समाजशास्त्रीय अध्ययन विभाग
दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय गया, बिहार।

(ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में प्रस्तुत किए गए तमाम आंकड़े उनके अध्ययन पर आधारित है)

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