उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा कथित लव जिहाद के ख़िलाफ़ बनाए गए नए कानून की चौतरफ़ा आलोचना हो रही है। हाइकोर्ट में भी कानून को चुनौती दी जा चुकी है।

अब सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मदन बी लोकुर ने इस कानून पर अपनी आपत्ति दर्ज की है। उन्होंने कहा कि इस कानून में कई ख़ामियां हैं, इसलिए ये कोर्ट में टिक नहीं पाएगा।

जस्टिस लोकुर ने ये बात मंगलवार को दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश दिवंगत राजेंद्र सच्चर पर पुस्तक ‘इन पर्सूट ऑफ जस्टिस-एन ऑटोबायोग्राफी’ के विमोचन के अवसर पर ‘व्यक्तिगत स्वतंत्रता एवं न्यायपालिका’ विषय पर कही।

कानून की आलोचना करते हुए पूर्व न्यायाधीश ने कहा, “संविधान कहता है कि अध्यादेश तब जारी किया जा सकता है जब फौरन किसी कानून को लागू करने की ज़रूरत हो।

जब विधानसभा का सत्र नहीं चल रहा था तब इसे (अध्यादेश को) तुरंत जारी करने की क्या ज़रूरत थी? बेशक कुछ नहीं… कहीं से भी यह अध्यादेश नहीं टिकेगा। इसमें कानूनी एवं संवैधानिक दृष्टिकोण से कई खामियां हैं।

इस दौरान पूर्व न्यायाधीश ने कश्मीर संकट पर सुप्रीम कोर्ट के रवैये की भी आलोचना की। उन्होंने कहा कि कोई भी किसी व्यक्ति को बगैर मुकदमा या सुनवाई के अनिश्चितकाल तक एहतियाती हिरासत में नहीं रख सकता है।

जस्टिस लोकुर ने कहा कि कश्मीर में एक साल से अधिक समय से लोगों को नज़रबंद रखा गया। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर संज्ञान नहीं लिया। लोगों के संचार के माध्यम काट दिए गए, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसका समाधान नहीं किया।’

उन्होंने चीफ़ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) एसए बोबड़े पर टिप्पणी करते हुए कहा कि सीजेआई एक व्यक्ति के साथ-साथ एक संस्था भी हैं और मामलों के आवंटनकर्ता होने के नाते, अगर वह कुछ मामलों को अन्य की तुलना में प्राथमिकता देते हैं, तब एक संस्थागत समस्या होगी।

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