बीजेपी भले ही अपने कुनबे को बढ़ाने की कोशिश कर रही हो। मगर सच्चाई ये है कि एक के बाद एक उसके सहयोगी दल एनडीए का साथ छोड़ते जा रहें है।

उपेन्द्र कुशवाहा के बाद अब असम गण परिषद (एजीपी) ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया। इस बात की जानकारी खुद एजीपी अध्यक्ष अतुल बोरा ने दी है।

दरअसल एजीपी ने बीजेपी से समर्थन वापस लेने की वजह नागरिकता संशोधन विधेयक बताया है। जिसमें बोरा ने कहा कि हमने इस विधेयक को पारित नहीं कराने के लिए मोदी सरकार को मनाने के लिए आज आखिरी कोशिश की लेकिन गृहमंत्री ने हमसे स्पष्ट कहा कि यह लोकसभा में कल (मंगलवार) पारित कराया जाएगा। इसके बाद, गठबंधन में बने रहने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता है।

मोदी सरकार यह विधेयक बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के गैर मुस्लिमों को भारत की नागरिकता देने के लिए ला रही है। जिसका विरोध सभी विपक्षी दल पहले से ही कर चुके है,

कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) का कहना है कि धर्म के आधार पर नागरिकता नहीं दी जा सकती है और पूरी तरह से असंवैधानिक है।

वहीं इससे पहले एजीपी के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री प्रफुल्ल कुमार महंत ने पहले ही बयान देते हुए कह दिया था कि अगर नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2016 लोकसभा में पारित होता है तो उनकी पार्टी सरकार से समर्थन वापस ले लेगी।

126 सदस्यों वाली असम विधानसभा में बीजेपी का असम गण परिषद और बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट के साथ गठबंधन है। इसमें 60 सदस्य बीजेपी के, 14 एजीपी जबकि 12 बीजीएफ के हैं।

बता दें कि विधेयक नागरिकता कानून 1955 में संशोधन के लिए लाया गया है। यह विधेयक कानून बनने के बाद, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के मानने वाले अल्पसंख्यक समुदायों को 12 साल के बजाय छह साल भारत में गुजारने पर और बिना उचित दस्तावेजों के भी भारतीय नागरिकता मिल सकेगी।  

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