कल रात से रेलवे के ग्रुप डी के परीक्षार्थियों के फोन आ रहे हैं। मेसेज आ रहे हैं। इनकी बेचैनी में मैं अब एक ही बात पढ़ता हूं। जनता ही जनता की लिस्ट से बाहर कर दी गई है। चैनलों ने इतनी मेहनत कर उन्माद में झोंका है, सांप्रदायिकता में झोंका है, इसलिए नहीं कि आप अपने अधिकार के लिए आवाज़ उठाएंगे तो वे दौड़ कर कैमरा लेकर आ जाएंगे बल्कि इसलिए अब आप एक पार्टी की राजनीति के काम आएंगे। दिमाग़ नहीं लगाएंगे। ऐसी हताशा झेलने वाले आप अकेले नहीं हैं। चार सालों में मैं ऐसे कई समूहों को तूफान की तरह आते हुए और बीच राह में ढीली पड़ चुकी किसी आंधी की तरह देखता रहा हूं। अब आपका कुछ नहीं हो सकता है। आप मीडिया और राजनीतिक दलों के विशाल प्रचार तंत्र के ग़ुलाम हो चुके हैं।
आप लाखों बार पीयूष गोयल के ट्वीटर हैंडल पर ट्वीट कर लें, कुछ नहीं होगा। पहले भी नहीं हुआ, अब भी नहीं होगा। आपका हो जाएगा तो किसी और का नहीं होगा। भारत के लोकतंत्र में हारी हुई लड़ाइयों की फ़ेहरिस्त लंबी होती जा रही है। मुझे फोन कर आप भ्रम पाल रहे हैं। आप किसी और एंकर को फोन नहीं कर सकते जबकि आप टीवी पर देखते उन्हीं एंकरों को हैं। जो हर दिन आपके भीतर की जनता को ख़त्म कर रहे होते हैं और आप अपने भीतर की जनता के मिटने पर ताली बजा रहे होते हैं। इसलिए मुझे आपकी हालत पर दुख है। मगर आपको अपने जैसों की हालत पर कोई दुख नहीं है। अपनी हालत पर भी दुख नहीं है।
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छात्रों का मेसेज कहता है कि रेलवे के ग्रुप डी के रिज़ल्ट में कथित रूप से बड़ा घोटाला हुआ है। 100 नंबर के पेपर में 111 नंबर आए हैं। 120 नंबर आए हैं। 148 नंबर आए हैं। नार्मलाइज़ेशन के नाम पर 25 से 35 नंबर बढ़ाए गए हैं। जिसे 64 नंबर आया है वो पास नहीं हो सका है। 45 नंबर वाला पास हो चुका है। एक दूसरा मेसेज कहता है कि 100 नंबर के पेपर में 109,148, 105, 111, 102, 101 अंक आए हैं। जिनके अंक 40,50 हैं उनका नंबर नार्मलाइज़ करके 80,85, 87,90 तक कर दिया गया है। 60, 65,66,70 और 75 अंक वाले को नार्मलाइज़ करके 58,63,70,71 कर दिया गया है। ऐसे लोग पास होने से वंचित हो गए हैं। छात्र अपना पासवर्ड दे रहे हैं कि मैं खुद चेक कर लूं। लेकिन रवीश कुमार को अंग्रेज़ी और गणित नहीं आती है यह बात दुनिया को मालूम चले ताकि फिर से कोई ऐसी चुनौती न दे।
कुछ छात्रों का कहना है कि उन्हें नहीं पता कि घोटाला है या ग़लती है लेकिन मेहनती छात्रों के साथ अन्याय हुआ है। एक ने लिखा है कि परीक्षार्थियों को बिना उनके नंबर दिखाए, नार्मलाइज़ कर दिया गया है। किसी को पता नहीं कि मूल नंबर कितना आया है। जिनकी परीक्षा सितंबर-अक्तूबर में हुई है उनके नार्मलाइज़ मार्क्स रॉ मार्क्स से मात्र 3 से 7 अंक बढ़े हुए हैं। ये नार्मलाइज़ेशन कैसे हुआ है, समझ से बाहर है।
छात्रों ने कहा है कि मैं उनकी आवाज़ बनूं। मेरे अलावा उनकी कोई सुनने वाला नहीं। बस इसी बात के लिए यहां लिख रहा हूं। आप सभी ने मिलकर आवाज़ बनने की प्रक्रिया को ख़त्म किया है। आज आपको ज़रूरत महसूस हुई तो आप मुझे अपनी आवाज़ बना रहे हैं। मैं इसीलिए लिख रहा हूं ताकि आप अपने लिए और दूसरों के लिए आवाज़ का महत्व समझ सकें। आप लोग नेक हैं मगर चैनलों ने आपकी नागरिकता को भरमा दिया है।
एक छात्र ने मेसेज भेजा है कि रेलवे ने NTPC पोस्ट के लिए 35,277 वेकेंसी निकाली है। इसमें जनरल और EWS के कुल मिलाकर 18,641 हैं। ओबीसी 8712, अनुसूचित जाति के 5127 और अनुसूचित जनजाति के 2787 हैं। इसलिए सीटें जनरल के पक्ष में ज़्यादा गई हैं। क्या जनरल की सीट सबके लिए ओपन नहीं होती? वहीं EWS श्रेणी के छात्र मेसेज करते हैं कि सभी आरक्षित वर्ग में उम्र सीमा में छूट दी जाती है तो आर्थिक रूप से कमज़ोर तबके की श्रेणी में यह छूट क्यों नहीं हैं।
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रेल मंत्री को चाहिए कि वे इन परीक्षार्थियों के सवालों का जवाब दें। उन्हें नंबर तय करने की प्रक्रिया के बारे में ठीक से बताएं। लाखों छात्रों को यह नहीं लगना चाहिए कि उनके साथ किसी ने बेईमानी की है। परीक्षा की प्रक्रिया पूरी तरह से पारदर्शी होनी चाहिए। परीक्षार्थियों से यही कहूंगा कि इसी वक्त आप उन सवालों पर सोचें जिनके बारे में मैंने सबसे पहले लिखा है।
चुनावों तक टीवी देखना बंद कर दें। आपको न्यूज़ चैनलों के कंटेंट से लड़ना ही होगा। ये वो कंटेंट हैं जो आपके ख़िलाफ़ हैं। आपके सहज विवेक का अपमान करते हैं। आप कैसे जनता को ख़त्म होते देख सकते हैं, झूठ और भरम से लैस जनता जनता नहीं रह जाती। आप भी जनता नहीं रह गए हैं। चैनल देखना बंद कर दें। जो पैसा आप चैनल देखने में ख़र्च कर देते हैं वो किसी ग़रीब छात्र को हर माह दे दें। समाज अच्छा हो जाएगा। आइये, न्यूज़ चैनलों के कंटेंट के ख़िलाफ़ असहयोग आंदोलन छेड़ते हैं। फिर से जनता बनते हैं। जनता का भारत बनाते हैं। नेता का नहीं।