6 साल से “मुफ़्तखोर, टुकड़े-टुकड़े गैंग, राष्ट्रविरोधी और नक्सली” जैसे तमगों के साथ, सरकारी दमन झेल रहे JNU के छात्रों पर, भाजपा सरकार और उसकी दिल्ली पुलिस अभी भी नरम पड़ने को तैयार नहीं है। आये दिन नए नए तरीकों से JNU के छात्रों को देशद्रोही और सत्ताविरोधी साबित करके, आखिर किस बात का बैर निकाला जा रहा है?

नफ़रत सिर्फ यूनिवर्सिटी के नाम से है, या यहां पढ़ने वाले बच्चों के सजग और खुले हुए विचारों से है? आज फिर दिल्ली पुलिस जेएनयू के छात्र-छात्राओं पर डंडे लेकर टूट पड़ी…!

‘शशिभूषण’ बहुत अच्छा गाते हैं, मेधावी हैं, पर आंखों से दिखाई नहीं देता, लेकिन ये बात दिल्ली पुलिस तो देख सकती थी? क्रूरता का नंगा नाच देख कर भी अनदेखा करने के लिए और नौजवान छात्रों की छाती पर लाठी-जूते बरसाने के लिए, बड़ा कठोर दिल, और सत्ता के प्रति भारी भक्ति भावना चाहिए।

शशिभूषण जैसे ही कई गरीब, खूंखार बच्चों को पढ़ने की इच्छा रखने की सख़्त सज़ा देना चाहती है भाजपा की सरकार। इन कुख्यात, खतरनाक पढ़ने के इच्छुक छात्रों में 21 साल के एन. किशोर कुमार हैं, जो बचपन से 90 प्रतिशत नेत्रहीन हैं। किशोर के पिता भिलाई में मज़दूर हैं। मुरैना के गोपाल कृष्ण भी देखने में असमर्थ हैं।

उनके पिता रिटायर्ड सिक्योरिटी गार्ड हैं। बिहार के सासाराम की 21 साल की ज्योति कुमारी के पिता किसान हैं। इंदु कुमारी के पिता बोकारो में पैंट्री चलाते हैं। मेरठ के अल्बर्ट बंसला और उनकी दादी का ख़र्च दादा की छोटी सी पेंशन से चलता है।

इतने ख़तरनाक परिवार से आने वाले बच्चों को सरकार कम पैसों में कैसे पढ़ने दे सकती है? क्योंकि अनपढ़ों की तानाशाही सरकार में, पढ़ाई करना सबसे बड़ा देशद्रोह है। देशभक्ति तो है पैसे लेकर महिलाओं, स्वतंत्रता सेनानियों, विपक्षी पार्टियों को गाली देना, सड़क पर निर्दोष लोगों को सज़ा देना, गलत बात में सरकार की हां में हां मिलाना।

बेशक JNU तुम लाठी के ही हकदार हो!

( ये लेख AAP नेता दिलीप पांडेय के फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है )

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