पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने नोटबंदी और जीएसटी को लेकर कहा था कि, इसके दूरगामी परिणाम खतरनाक होंगे। नोटबंदी और जीएसटी की मार अब आम लोगों के ऊपर गिरने लगी है। देश में मंदी है। भारतीय अर्थव्यवस्था में छाई सुस्ती आने वाले दिनों में लोगों की नौकरियां छीन सकती है। मंदी का संकट इतना गंभीर है कि कंपनियां अपने कर्मचारियों की छटनी कर रही हैं।
अकेले आईटी सेक्टर में 40 लाख नौकरियां संकट में हैं। वहीं मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में 2014 से अब तक 35 लाख नौकरियां चली गईं। बावजूद इसके मोदी सरकार भारत में मंदी से इनकार करती रही और देश को अंधेरे में रखा। जबकि पीएम नरेन्द्र मोदी से लेकर पूर्व बीजेपी नोटबंदी और जीएसटी के फायदे गिनती रही है लेकिन कभी ये नहीं बताया गया कि इससे देश को क्या फायदा मिला है।
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सालाना 2 करोड़ रोजगार देने का वादा करने वाली मोदी सरकार में नौकरियों की संभावनाएं लगातार ख़त्म होती जा रही हैं। कंपनियां अपनी लागत बचाने के लिए सीनियर और मध्यम स्तर के कर्मचारियों को बाहर निकाल रही हैं जबकि ज्यादा से ज्यादा फ्रेशर्स को नौकरी दे रही हैं। नतीजा ये रहा है कि, मैन्युफैक्चरिंग 2014 से अब तक 35 लाख नौकरियां चली गईं।
आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल बेरोजगारी अपने रिकॉर्ड स्तर पर थी। बेरोजगारी दर 45 साल में सबसे ज्यादा थी। मोदी सरकार में देश की जीडीपी भी 12 सालों में सबसे कम है। गिरती जीडीपी की वजह से आईटी कंपनियां, ऑटो कंपनियां और बैंक सेक्टर सभी लगत में कटौती के उपाय कर रही हैं। इससे कर्मचारियों में डर का माहौल बना हुआ है। जानकार मानते हैं कि हालत इससे भी बदतर हो सकते हैं।
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आईटी कंपनी कॉग्निजैंट ने 7,000 कर्मचारियों को निकालने का ऐलान किया है। कैपजेमिनी ने 500 कर्मचारियों को बाहर निकाल दिया है। आईटी सेक्टर के सीनियर और माध्यम स्तर के 40 लाख कर्मचारियों को नौकरी खतरे में है। आईटी कंपनियां फ्रेशर्स को इसीलिए नौकरी पर रख रही हैं, क्योंकि इसको बहुत कम वेतन पर रखा जाता है। इसका साफ़ मतलब है कि, मोदी सरकार में अब कंपनियों के पास पैसा नहीं है। सभी कंपनियां घाटे में जा रही हैं।
वहीं बता दें कि, टेलिकॉम सेक्टर की सरकार कंपनियों की भी हालत ख़राब चल रही है। BSNL बंद होने की कगार पर है। इस सरकारी कंपनी से अत्बक वीआरएस स्कीम के तहत 75,000 लोगों को बाहर निकाल दिया गया है।