प्रधानमंत्री मोदी ने 3 साल पहले एक भाषण दिया था साथ ही एक ऐसा ऐलान किया कि जिसका असर देश की अर्थव्यवस्था पर आज तक देखा जा रहा है। उन्होनें तब ये घोषणा की थी कि देश में 500 और 1000 के ‘नोटों’ की ‘बंदी’ हो जाएगी, ‘नोटबंदी’ हो जाएगी। उस फैसले से देश के बड़े-बड़े बैंकों से लेकर छोटी-छोटी दुकानों तक पर बुरा प्रभाव पड़ा।
सोशल मीडिया पर कई लोग नोटबंदी से अपनी नाराजगी जता रहे हैं। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश भघेल ने ट्वीट कर लिखा कि, “नोटबंदी के तीन साल- ये कैसा सफर
क्या हुआ असर
होना था आतंकवाद का खात्मा
रो रही इकॉनॉमी, जीडीपी की आत्मा
“कालाधन पे पाबंदी” कहाँ है
हर क्षेत्र में अब “मंदी” यहाँ है
नौकरियाँ जा रही हैं, बंद हो रहा धंधा
फिर भी साहेब कह रहे, यहाँ सब है चंगा”
नोटबंदी के तीन साल-
ये कैसा सफर
क्या हुआ असरहोना था आतंकवाद का खात्मा
रो रही इकॉनॉमी, जीडीपी की आत्मा"कालाधन पे पाबंदी" कहाँ है
हर क्षेत्र में अब "मंदी" यहाँ हैनौकरियाँ जा रही हैं, बंद हो रहा धंधा
फिर भी साहेब कह रहे, यहाँ सब है चंगा#DeMonetisationDisaster— Bhupesh Baghel (@bhupeshbaghel) November 8, 2019
भूपेश बघेल की इस कविता में लिखी हर लाइन के ज़रिए नोटबंदी से जुड़े हर पहलू को समझा जा सकता है। ये भी समझा जा सकता है कि नोटबंदी से देश पर इन तीन सालों में क्या असर पड़ा है।
पहला- सरकार का दावा था कि इससे आतंकवाद खत्म होगा। प्रधानमंत्री ने नोटबंदी का एलान 8 नवंबर 2016 को किया था। लेकिन देश पर पुलवामा जैसे हमले नोटबंदी के बाद ही होते हैं। आतंकवाद तो नियंत्रण में नहीं आया लेकिन इसका अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा असर पड़ा। IMF की रिसर्च के मुताबिक नोटबंदी के कारण व्यापार और रोज़गार पर बुरा असर पड़ा है।
दूसरा, ‘कालेधन’ को भी पकड़ा नहीं जा सका, 99 प्रतिशत नोट वापस बैंकों में जमा कर दिए गए थे। उल्टा इसके कारण आई मंदी से लोगों की नौकरियाँ चली गयी।
CMIE की रिपोर्ट के मुताबिक, देश की 15 लाख नौकरियाँ 2017 के पहले चार महीने में ही चली गई थीं।
लेकिन प्रधानमंत्री शायद इन सबको देश पर मुसीबत नहीं मानते, वो इन सबसे देश की सुरक्षा नहीं करना चाहते। इसलिए तो वो कहते हैं कि सब ठीक है।