विपक्ष कवर पर आने लगा है। पूरे चुनाव के दौरान यूपी के दो अख़बारों का कवरेज देखता रहा। ऐसा लगता था कि सपा के अखिलेश यादव पाँच सीट पर ही चुनाव लड़ रहे हैं।

गोदी मीडिया ने अखिलेश को ग़ायब कर दिया। अगर अखिलेश चुनाव जीत जाते हैं तो उन्हें इन अख़बारों को मंगा कर पढ़ना चाहिए।

उससे पता चलेगा कि वे यूपी में इतने बड़े नेता नहीं थे कि अख़बार उनकी पार्टी को जगह देते और यह भी पता चलेगा कि बिना मीडिया के चुनाव जीत सकते हैं।

अगर नए मुख्यमंत्री में यह आत्मविश्वास आ जाएगा तो सरकार के पैसे से गोदी मीडिया का लालन पालन बंद हो जाएगा और जनता का पैसा बचेगा।

सबक योगी के लिए भी है। हारने पर भी और जीतने पर भी। गोदी मीडिया के एंकरों ने घटिया सवाल पूछ कर जनता की नज़र में उनकी हैसियत गिरा दी।

योगी को यह खेल तब समझ नहीं आया होगा। उन्हें लगा होगा कि गोदी को चेक चला गया है तो ऐंकर हंसी ठिठोली कर रही है लेकिन इससे मोदी से भी बड़ा नेता बनने का सपना देखने वाले योगी की छवि ख़राब हो गई।

गोदी एंकरों के सवालों ने फ़िक्स कर दिया कि उनके इंटरव्यू से कुछ ठोस न निकले। योगी का क़द छोटा होता रहे।

योगी को भी पता है कि परीक्षा में अच्छे अंक मुश्किल सवालों को हल करने पर मिलते हैं न कि अंदाज़ी टक्कर टिक मार्क करने पर।

अगर योगी नहीं जीतते हैं तो सबसे पहले उन्हें गोदी मीडिया के हमले का ही सामना करना होगा। गोदी मीडिया उनकी हार को मोदी शाह का मास्टर स्ट्रोक बताएगा।

कहेगा कि मोदी ने अपनी राह से काँटा निकाल दिया। योगी को यक़ीन नहीं होगा कि जिस गोदी मीडिया को इतने टुकड़े फेंके वह उनका मज़ाक़ उड़ा रहा है। योगी की हार पर पाला बदल रहा है।

अगर योगी जीत गए तब तो कोई बात नहीं। गोदी मीडिया को लेकर अपनी ग़लतियाँ जारी रखेंगे।

फिर भी मुख्यमंत्री बनने पर योगी इतना तो समझ सकेंगे कि उनके विज्ञापनों का क्या हुआ। कवरेज से ग़ायब विपक्ष कवर पर कैसे आ गया? क्या अखिलेश आ रहे हैं ?

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