शिक्षक पात्रता परीक्षा टीईटी की परीक्षा के लिए 19 लाख से अधिक परीक्षार्थी घरों से निकले थे। परीक्षा शुरू नहीं हुई कि प्रश्न पत्र लीक होने और परीक्षा के ही रद्द किए जाने की ख़बरें आने लगी। इस परीक्षा को लेकर आज के अमर उजाला में पहले पन्ने की ख़बर छपी है।

लेकिन इसी अमर उजाला के अलग अलग ज़िलों के संस्करण में हर दिन दरोगा भर्ती परीक्षा से जुड़ी ख़बरें भी छप रही हैं। आगरा, अलीगढ़, वाराणसी, गोरखपुर, मेरठ से अभी तक 27 लोग गिरफ्तार किए जा चुके हैं जो पैसे लेकर दूसरे के बदले परीक्षा देने या दिलाने का काम करते थे।

दरोगा भर्ती की परीक्षा 12 नवंबर से शुरू होकर 2 दिसंबर तक चलने वाली है। इस परीक्षा में भी 12 लाख से अधिक परीक्षार्थी हिस्सा ले रहे हैं।

उन पर ऐसी ख़बरों का क्या असर होता है, जो पढ़ने वाला छात्र है वह हर समय इस आशंका से घिरा रहता होगा कि कोई पैसे दकर प्रश्न पत्र हल कर देगा और पैसे देकर इंटरव्यू और शारीरिक परीक्षा पास कर जाएगा।

इन शिक्षक पात्रता परीक्षा और दरोगा भर्ती परीक्षा में शामिल 28 लाख परीक्षार्थियों से एक बार आप सर्वे कर लें। आपको पता चल जाएगा कि उन्हें यूपी की कानून व्यवस्था में कितना यकीन है। यूपी की परीक्षा व्यवस्था में कितना यकीन है।

अगर आप चाहते हैं कि राजस्थान और बिहार में ऐसा सर्वे करने के लिए तो प्लीज़ वहां भी करें। हर पार्टी की सरकार ने सरकारी भर्ती परीक्षा को मज़ाक बना दिया है। युवा ही बता सकते हैं कि इस मामले में किसकी सरकार बेहतर काम कर रही है। भर्ती निकालने में और समय से परीक्षा की प्रक्रिया पूरी करने में और बिना चोरी और पैरवी की धांधली के संपन्न कराने में। आपको नतीजा मिल जाएगा।

मेरी दिलचस्पी बस इतनी है कि इन युवाओं को एक ऐसी परीक्षा व्यवस्था मिले जो हर प्रकार के संदेह से ऊपर हो।अब युवाओं को इसकी जगह झूठ और धार्मिक उन्माद से भरा राजनीतिक भाषण चाहिए तो यह उनकी मर्ज़ी है। अगर उन्हें लगता है कि तीर्थयात्रा और धार्मिक कार्यक्रमों में शामिल होकर नंबर बढ़ाना सरकार का काम है तो यह युवाओं की मर्ज़ी है।

फिर उन्हें ऐसी ही परीक्षा व्यवस्था मिलेगी। अगर वे राजनीति में धर्म के तरह-तरह के प्रकार के इस्तमाल को अच्छा मानते हैं तो फिर उन्हें लंबे समय तक बेरोज़गार होने के लिए भी तैयार रहना चाहिए। मैंने तरह-तरह के इस्तमाल लिखा है क्योंकि सांप्रदायिकता केवल एक इस्तमाल है।

तीर्थयात्रा भी एक इस्तमाल है। दीपोत्सव एक इस्तमाल है। अगर आप यही चुनते हैं तो फिर आप नौकरी या आर्थिक नीतियों के विकल्पों पर बहस के मुश्किल रास्तों को छोड़ दीजिए। अच्छी परीक्षा व्यवस्था और प्रक्रिया की बात छोड़ दीजिए।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि एक महीने के बाद फिर से शिक्षक पात्रता परीक्षा कराई जाएगी लेकिन क्या वे दरोगा भर्ती परीक्षा भी फिर से कराना चाहेंगे? बेशक हम कई ज़िलों से सॉल्वर गिरोह के पकड़े जाने की ख़बरें देख रहे हैं लेकिन क्या यह यकीन से कहा जा सकता है कि दरोगा भर्ती परीक्षा में प्रश्न पत्र लीक नहीं हुआ, जिन केंद्रों पर सॉल्वर गिरोह नहीं पकड़ा गया, वहां वाकई चोरी नहीं हुई होगी?

दरोगा भर्ती परीक्षा में भी 27 लोग गिरफ्तार हो चुके हैं। इस परीक्षा से जुड़े छात्रों को किस मानसिक तनाव से गुज़रना पड़ रहा होगा, इसका अंदाज़ा छात्रों को होगा। अब यह पैटर्न हो चुका है। यह पैटर्न सरकार के हित में है। सरकार नौकरियां नहीं देना चाहती है। राजनीतिक दबाव में देने पर मजबूर हुई है वर्ना तो भूल गई थी। इसलिए एक रास्ता निकाला गया है।

परीक्षा आयोजित करो। उसे विवादित बन जाने दो ताकि परीक्षा होने के नाम पर होती ही रहे। दो चार परीक्षा समय से करा दो ताकि उसका प्रचार कर अपने मुख्यमंत्री होने के गौरव का प्रचार होता रहे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यानथ के भाषणों को देखिए जिनसे हेडलाइन बन रही है। हर दूसरे भाषण में माफिया पर ज़ोर है। यह ज़ोर कानून व्यवस्था के नाम पर होता है लेकिन इसका टोन सांप्रदायिक होता है।

कानून व्यवस्था के कवर में एक ही समुदाय को दंगाई से लेकर माफिया तक के रंग में रंगा जा रहा है। दोनों के भाषणों के तेवर से माफिया की परिभाषा बदल गई है। जब आप इसी राज्य की दूसरी खबरों को पलट कर देखते हैं तो अपराध के अलग अलग स्वरुप नज़र आते हैं।

प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री उन अपराधों को माफिया की श्रेणी में नहीं रखेंगे क्योंकि इससे उनके भाषणों का वो टोन हल्का हो जाएगा जो गौरववाद की राजनीति का जोश भरता है। आप देख रहे हैं कि यूपी में परीक्षा माफिया कितना खतरनाक और दुस्साहसी हो चुका है।

आप गूगल में दरोगा भर्ती परीक्षा, सॉल्वर गिरोह, उत्तर प्रदेश और अमर उजाला टाइप करें। यह परीक्षा 12 नवंबर से 2 दिसंबर के बीच चल रही है। अभी भी जारी है। इस परीक्षा का आयोजक उत्तर प्रदेश का पुलिस भर्ती और प्रोन्नति बोर्ड है। राज्य के 18 ज़िलों में अलग-अलग दिन पर यह परीक्षा आयोजित होती है। 9534 पदों के लिए हो रही इस परीक्षा में 12 लाख से अधिक परीक्षार्थी हिस्सा ले रहे हैं।

यह परीक्षा अलग अलग दिनों पर हो रही है और अलग अलग दिनों में कभी दो, कभी तीन और कभी पांच लोगों के पकड़े जाने की ख़बरें आ रही हैं। इसलिए विपक्ष की नज़र नहीं है और न ही योगी आदित्यानाथ बुलडोज़र चलाने की हुंकार भर रहे हैं।

वैसे बुलडोज़र चलाने की भाषा और अधिकार पर अलग से गंभीर अध्ययन के बाद बहस होनी चाहिए। आज कल अपराधियों का जिस तरह से सांप्रदायिकरण हुआ है, उससे एक समाज में असुरक्षा बढ़ी है। इसका कारण गोदी मीडिया और आईटी सेल है। अगर सारे अपराधी मुसलमान होते तो आज यही मीडिया परीक्षा जिहाद चला रहा होता।

आपको याद है कि जब जामिया के कुछ छात्र यूपीएससी में बेहतर कर गए तो एक चैनल ने इसे जिहाद बनाकर चलाया था।उस चैनल को सुप्रीम कोर्ट से डांट पड़ी थी। यही कारण है कि आज अल्पसंख्य समुदाय सबसे पहले यही देखता है कि कोई अपराधी मुसलमान तो नहीं वर्ना सारे मुसलमानों को आतंकी और अपराधी बता दिया जाएगा। इसकी आड़ में सामान्य अपराधियों के पांव में गोली मार दी जाएगी या घर पर बुलडोज़र चला दिया जाएगा। कानून का फैसला आने से पहले कार्रवाई के नाम पर कुछ और हेडलाइन बना दी जाएगी।

अपराध को अपराध की नज़र से देखिए। आपको कई ऐसी खबरें मिलेंगी जिसमें हर जाति धर्म के लोग शामिल मिलेंगे। अपराध का संबंध राजनीतिक और आर्थिक परिस्थितियों से होता है।

दरोगा भर्ती परीक्षा में गिरफ्तार और फरार कुछ नाम अमर उजाला में छपे मिले हैं। अनुभव सिंह, योगेंद्र सिंह, हरेंद्र सिंह,राजवीर सिंह, सिकेंद्र कुमार ठाकुर,अंकित कुमार श्रीवास्तव, संतोष यादव, नीरज लाकड़ा, अभिनाश यादव, नित्यानंद गौड़,, सेनापति साहनी, जीतू, अविनाश कुमार, बंटी कुमार, सुमित, सतेंद्र यादव, सिपाही रवि, इमरान,दीपक, मानवेंद्र, आशूतोष कुमार, विद्याशंकर। ये चंद नाम हैं जो दरोगा भर्ती परीक्षा में सॉल्वर गिरोह के सदस्य के रुप में पकड़े गए हैं।

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