राजेंद्र पाल गौतम

चुनावी बिसात बिछते ही अक्सर सभी राजनीतिक पार्टियों के लिए बाबासाहेब अंबेडकर अहम हो जाते हैं। संविधान में उनके द्वारा सम्मिलित सभी धर्म जाति और समुदाय के लोगों के लिए निहित बातें घोषणा पत्रों में फिर से स्थान पा लेती है। सरकारें बनते ही अगले पांच साल महज फाइल में रहती हैं। अगले चुनाव में फिर वही शगूफा छूटता है। ऐसा क्यों?

बीतें सात दशकों में भारतीय लोकतंत्र ने बार बार उन खतरों का सामना किया है जिनके प्रति डॉ भीमराव अंबेडकर ने पहले ही चेताया था। पिछले कुछ समय से संविधान को ताक पर रखने के आरोप भी इन दिनों आम हो चले हैं। जिस भारत की कल्पना बाबासाहेब ने संविधान लिखते वक्त की थी, उसे हम कितना हासिल कर पाए हैं वह सोचने का विषय है। जिस गंभीरता और पवित्रता के साथ संविधान की रचना की गई, क्या सरकारें उसी पवित्रता के साथ उसे निभा पाई हैं? क्या बाबासाहेब के संघर्षों के साथ हम न्याय कर पाए हैं ?

14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के मऊ में जन्मे अंबेडकर अपने माता-पिता की चौदहवीं संतान थे। उनके पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल और माता का नाम भीमाबाई था। बाबा साहब का परिवार महार जाति से संबंध रखता था, जिसे अछूत माना जाता था।

बचपन से ही आर्थिक और सामाजिक भेदभाव देखने वाले अंबेडकर ने विषम परिस्थितियों में पढ़ाई शुरू की। स्कूल से लेकर कार्यस्थल तक उन्हें अपमानित किया गया। बचपन से ही उन्हें जातिवाद का दंश झेलना पड़ा था और इसी दंश को झेलते हुए उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा हासिल की। शिक्षा के माध्यम से ही उन्होंने इस सामाजिक कुरीति को जड़ से खत्म करने की ठानी।

दुर्भाग्य से, बाबासाहब की जयंतियों (14 अप्रैल) व निर्वाण दिवसों (6 दिसंबर) पर अनेकों आयोजनों के बावजूद भी हमारी नई पीढ़ी को उनके व्यक्तित्व व कृतित्व के बारे में ज्यादा जानकारियां नहीं हैं। इसकी खास वजह ये है कि उनके व्यक्तित्व को संकुचित कर सिर्फ दलितों और शोषित समाज का मसीहा बताया जाता है जबकि अंबेडकर ने सभी वर्गों के लिए यहां तक की आधी आबादी महिलाओं के लिए भी उतना ही संघर्ष किया जितना दलित समाज के लिए किया।

डॉक्टर अंबेडकर की विचारधारा आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी आजादी के समय थी। उनके द्वारा संविधान में सर्व समाज की कल्पना निहित तो है, लेकिन यह देश का दुर्भाग्य है जो उनको सिर्फ एक विशेष वर्ग का मसीहा कहकर बांटने की कोशिश होती रही है।

1980 के दशक से ही हिंदुत्ववादी राजनीति का प्रभाव बढ़ता गया और राजनीति का ध्रुवीकरण इस कदर कर दिया गया कि आज भी चुनावों में हिंदू मुस्लिम और राष्ट्रवाद ही हिंदूवादी पार्टियों का नारा बनता है। बाबा साहबसिर्फ एक राजनीतिज्ञ ही नहीं थे अपितु कुशल अर्थशास्त्री भी थे, औद्योगिकरण के लिए भी उनका दृष्टिकोण अद्वितीय था।

बाबा साहब भारतीय अर्थव्यवस्था को जितना बेहतर समझते थे उतना शायद ही आज के मौजूदा समय में कोई समझता हो। बाबा साहब ने किसानों, मजदूरों, जल संचयन एवम विद्युत उत्पादन, महिला कल्याण, दलितों के उत्थान, लगभग सभी वर्गों के लिए, सभी जाति धर्म के समुदायों के लिए एक समान काम किया।

उनकी सबसे बड़ी चिंता यह थी कि जातियों में बंटा भारतीय समाज एक राष्ट्र की शक्ल कैसे लेगा और आर्थिक और सामाजिक ग़ैरबराबरी के रहते वह राष्ट्र के रूप में अपने अस्तित्व की रक्षा कैसे कर पाएगा?

उन्होंने यह आशंका भी जताई की अगर हमने इस ग़ैरबराबरी को ख़त्म नहीं किया तो इससे पीड़ित लोग उस ढांचे को ध्वस्त कर देंगे, जिसे इस संविधान सभा ने इतनी मेहनत से बनाया है। उनकी कामना थी कि संवैधानिक संस्थाएं वंचित लोगों के लिए अवसरों का रास्ता खोले और उन्हें लोकतंत्र में हिस्सेदार बनाएं। राष्ट्रीय एकता के लिए यह बेहद महत्वपूर्ण है।

अंबेडकर ने लिखा था कि लोकतांत्रिक राजनीति में अगर साम्प्रदायिक बहुसंख्यक राजसत्ता की अनदेखी करता है तो लोकतांत्रिक राज्य के लिए यह जरूरी हो जाता है कि वह ऐसी सांस्थानिक व्यवस्था विकसित करे जो अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा कर सके।

दूसरे शब्दों में, बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक समुदायों के बीच खाई को पाटना जरूरी है। परंतु वर्तमान समय भारत में जो राजनीतिक पार्टी सत्ता में काबिज है उसने दोनों समुदायों के बीच इस खाई को और चौड़ा किया है और ऐसा उसने लोकतांत्रिक प्रक्रिया की आड़ में किया है।

डॉ० अंबेडकरके अनुसार, लोकतंत्र का सार है “एक व्यक्ति, एक वोट” नागरिक स्वतंत्रता और राजनीतिक स्वतंत्रता।
चुनावों का मौसम चल रहा है। आइए भारतीय नागरिक होने के नाते, उस संविधान के स्वयं हम खुद मालिक होने के नाते यह संकल्प लें कि अपने क्षेत्र से ऐसे जनप्रतिनिधि को चुनेंगे जो चौकीदार के भेष में चोरी छिपे हमारे संविधान को ही हमसे न चुरा ले।

हम ऐसे प्रतिनिधि को चुनेंगे जो संविधान सम्मत हर नागरिक के शिक्षा स्वास्थ्य की उत्तम व्यवस्था करेगा। जो बाबासाहेब के संविधान की संघीय व्यवस्था की अस्मिता को बचाने हेतु मुस्तैद रहेगा। यही बाबासाहेब अंबेडकर के प्रति, भारतीय संविधान के प्रति हर नागरिक की सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

(राजेंद्र पाल गौतम दिल्ली सरकार में सामाजिक कल्याण और अनुसूचित जाति-जनजाति कल्याण मंत्री हैं )

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here