आदिल
पत्रकार आजाद भारत में भी आजाद नहीं है, वो गुलामी और आपातकाल से भी ज्यादा बुरे दौर में जीने को मजबूर है। वो मजाकिया पोस्ट पर गिरफ्तार होते है और तो और सवाल उठाने पर भी हिरासत में ले लिए जाते है। ऐसा नहीं है कि पत्रकारों से दिक्कत सिर्फ भारतीय जनता पार्टी को है, दिक्कत सत्ता में बैठी सरकारों को है। पिछले दिनों राहुल गांधी ने पत्रकारों की गिरफ़्तारी पर बीजेपी की आलोचना की थी।
If every journalist who files a false report or peddles fake, vicious RSS/BJP sponsored propaganda about me is put in jail, most newspapers/ news channels would face a severe staff shortage.
The UP CM is behaving foolishly & needs to release the arrested journalists. https://t.co/KtHXUXbgKS
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) June 11, 2019
मगर राहुल गांधी लिखते वक़्त ये भूल गए की कर्नाटक में जहां उनकी सरकार गठबंधन से चल रही है, वहां पर भी फेसबुक लाइव के दौरान कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा पर अभद्र टिप्पणी करने के चलते पुलिस ने दो लोगों को गिरफ्तार किया था जिनकी पहचान सिद्धराजू और जौमराजू के रूप में हुई है।
Four held for assaulting Karnataka journalistshttps://t.co/eZdbLCB4M2 pic.twitter.com/Aik19Y2R0S
— Hindustan Times (@htTweets) June 13, 2019
गिरफ़्तारी के बाद फेसबुक लाइव विडियो तो डिलीट हो गया मगर सवाल वहां भी उठे। सवाल उठाने वाली थी विपक्ष में बैठी बीजेपी जिसने सीएम एचडी कुमारस्वामी को सलाह देते हुए कहा कि अन्ना, आपके मित्र राहुल गांधी सोचते हैं कि आपके खिलाफ मीम और ब्लॉग लिखने वाले को गिरफ्तार करना मूखर्तापूर्ण व्यवहार है लेकिन वह आपका नाम लेने से डर रहे हैं। उन्हें डर है कि आपने अगर नाराज होकर गठबंधन की सरकार से खुद को अलग कर दिया तो उनकी पार्टी कर्नाटक से भी बाहर हो जाएगी। उनकी सुनिए। मतलब साफ़ है कि सरकार किसी की भी हो, सवाल पूछने पर पीटा पत्रकार जायेगा।
इस मामले में केरल की पिनरई विजयन सरकार ने सबको पीछे छोड़ दिया। खुद केरल सरकार ने बीते बुधवार को माना कि सोशल मीडिया पर मुख्यमंत्री पिनरई विजयन को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी पोस्ट करने के लिए पिछले तीन सालों में 119 लोगों पर मामले दर्ज किए गए।
हैरान करने वाली बात ये है 119 में से 12 आरोपी सरकार के अपने कर्मचारी हैं और एक केंद्र सरकार के स्टाफ में शामिल हैं। राज्य सरकार के कर्मचारी जिन्होंने सोशल मीडिया पर कथित तौर पर मुख्यमंत्री के खिलाफ अभद्र टिप्पणी की थी, उन्हें ससपेंड भी किया जा चुका है।
सवाल ये नहीं है की और सरकारों से सवाल क्यों नहीं हो रहा है। असल सवाल ये है की आखिर सवाल पूछने पर किसी को पीटना, जेल में डाल देना, मुंह में पेशाब कर देना क्यों किया जाता है? क्या पत्रकारों के साथ अब ऐसा ही सलूक किया जायेगा? ये ज़रूर है की अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर किसी का कुछ भी कहना सही नहीं ठहराया जा सकता है। मगर ये भी एक सच है की किसी को कुछ कह देने पर आप उसे जेल में नहीं ठूस सकते है।
ये लोकशाही नहीं है ये तानाशाही है जो राज्य की सरकारें कर रही है। ये सबक सिखाने के उद्देश से किये जाते है, जैसे राजशाही के दौर में होता था। राजशाही के वक़्त अगर कोई शख्स राजा के खिलाफ मजाक भी करता था तो उसे काल कोटरी के अंधेरों में सालो कैद कर दिया जाता था।
लोकतांत्रिक देश की पहचान वहां के मुखर पत्रकारों से होती है विपक्ष से होती। जो सवाल करते है। मगर भारत में ऐसा होता नहीं दिखाई दे रहा है, यहां मीडिया या तो पार्टी का प्रवक्ता बना बैठा या फिर सांस-बहु की ख़बरें चला रहा है। जिसका असर सीधे देश की पत्रिकारिता पर पड़ रहा है।
इसी साल आई ‘रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स‘ की सालाना रिपोर्ट में भारत प्रेस की आजादी के मामले में 180 देशों में 140वां स्थान मिला था। रिपोर्ट में ये भी कहा गया था कि भारत में चल रहे चुनाव प्रचार के दौर को पत्रकारों के लिए खासतौर पर सबसे खतरनाक वक्त के तौर पर पहचाना गया है।
साल 2018 में आई इसी रिपोर्ट्स विदआउट बॉर्डर्स की रिपोर्ट की रिपोर्ट ने चौकाने वाला खुलासा किया था। इसमें कहा गया था कि पत्रकारों के लिए सबसे खतरनाक देशों में भारत पत्रकारों के लिए दुनिया का पांचवां सबसे असुरक्षित देश है।
भारत में साल 2018 में 6 पत्रकार मारे गए और अन्य कई पत्रकारों पर जानलेवा हमले किए गए। साथ ही कई पत्रकारों के साथ मारपीट या फिर धमकी की घटना हुई। इसके अलावा कई पत्रकारों को अपने खिलाफ हेट कैंपेन का भी सामना करना पड़ा, जिसमें सोशल मीडिया पर जान से मारने की धमकी बेहद आम बात रही।
रिपोर्ट कहती है कि पत्रकारों के लिहाज दुनिया के 5 सबसे खतरनाक देशों में भारत के अलावा अमेरिका, मैक्सिको, यमन, सीरिया और अफगानिस्तान भी शामिल है। क्या अब पत्रकार खबर करने फ़ील्ड पर जायेगा तो सत्ता में बैठी सरकार से पूछकर जायेगा? या फिर विपक्ष के कहने पर रिपोर्ट करेगा?
अब पटरी से उतर रही ट्रेन की खबर सबके सामने नहीं आएगी तो सफ़र करने वाली जनता को कैसे पता चलेगा की ट्रेन कितनी सुरक्षित है? या फिर रेलवे को कैसे पता चलेगा की सुधार कहाँ करना है और कितना करना है? ना की रिपोर्ट करने वाले पत्रकार के मुंह में पेशाब कर देने से हल निकलेगा।
सिर्फ टीवी स्टूडियो में बैठने वाले एंकर पत्रकार नहीं होते पत्रकार वो हर शख्स है जो सरकार से सवाल करता है। उसे डराने और धमकाने का मतलब है लोकतंत्र को कमजोर करना लोगो को कमजोर करना। ये सभी बातें चीन और दक्षिण कोरिया के लिए नहीं भारत के लिए है जहां पत्रकारों ने देश की आज़ादी में अहम भूमिका अदा की है।