कोरोना महामारी के दौरान जहां देश दुनिया की तमाम सरकारें चिंतित हैं कि ज्यादा से ज्यादा अस्पताल, वेंटिलेटर और आईसीयू की व्यवस्था कैसे की जाए वहीं बिहार में नीतीश कुमार की सरकार चुनावी तैयारियों में व्यस्त है। इस बात की पुष्टि इससे भी हो जाती है कि पहले बीजेपी ने वर्चुअल रैली का आयोजन किया और अब जेडीयू वर्चुअल रैली करने जा रही है।
हैरानी की बात यह है कि यह सब उस राज्य में हो रहा है जहां लॉकडाउन के दौरान बेरोजगार होकर सबसे ज्यादा विस्थापित मजदूर वापस आए हैं। गौरतलब है कि लाखों की संख्या में आए हुए बेबस मजदूरों की समस्याओं को संबोधित करते हुए किसी भी वर्चुअल या एक्चुअल रैली का अभी तक आयोजन नहीं किया गया।
ऐसा करके जेडीयू और बीजेपी की सरकार यह साफ कर दे रही है कि उसका ध्यान आगामी विधानसभा चुनाव महत्व पर है। इसी को मुद्दा बनाते हुए बिहार के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव फेसबुक पर लिखते हैं- चाहे नीति आयोग की रिपोर्ट हो या नेशनल हेल्थ मिशन (NHM) इन संस्थानों के सारे मानकों पर बिहार नीतीश राज के पंद्रह सालों में साल-दर-साल फिसड्डी होते चला गया। ऐसा होना भी लाज़िमी है जिस प्रदेश के मुख्यमंत्री अपनी कुर्सी के स्वास्थ्य चिंता हो उसे प्रदेश वासियों के स्वास्थ्य की चिंता क्यों होगी?
हर साल कुपोषण और चमकी बुखार से सैकड़ों बच्चों की मृत्यु होती है , इस कोरोना महामारी ने तो बिहार की मरणासन्न स्वास्थ्य व्यवस्था का पर्दाफाश कर दिया। अस्पतालों की कमी, उनमें बिस्तरों की कमी, ICU beds की कमी, ventilator की कमी जो की देश में सबसे कम बिहार में ही है. इन सब के ऊपर डॉक्टर, नर्स और अन्य स्वास्थ्यकर्मियों की कमी से बिहार जूझ रहा है. स्थिति इतनी भयावह है कि जिला स्वास्थ्य केंद्र भी रेफरल अस्पताल बन कर रह गए है.
Public Healthcare के मामले में बिहार पुरे देश में सबसे पीछे है. इसी का नतीजा है की बाहरी राज्यों में इलाज के लिए हमारे बिहारी भाई-बहन जाने को मजबूर नहीं होते बल्कि बिहार का सालाना हज़ारों करोड़ दूसरे प्रदेशों में इलाज के लिए खर्च होता है. जाने को मजबूर नहीं होते बल्कि बिहार का सालाना हज़ारों करोड़ दूसरे प्रदेशों में इलाज के लिए खर्च होता है।
स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा तय मानक Health centre per thousand population (आबादी पर स्वास्थ्य केंद्र) में बिहार सबसे आखिरी पायदान पर है. डॉक्टर मरीज अनुपात पुरे देश में सबसे ख़राब है।
जहाँ विश्व स्वास्थ्य संगठन के नियमों अनुसार प्रति एक हज़ार आबादी एक डॉक्टर होना चाहिए (1 :1000 ) बिहार में ये 1:3207 है. ग्रामीण क्षेत्रों में तो और भी दयनीय स्थिति है जहाँ प्रति 17685 व्यक्ति पर महज 1 डॉक्टर बिहार में है. आर्थिक उदारीकरण के 15 वर्षों में नीतीश सरकार ने इस दिशा में क्या कार्य किया है यह आंकड़े बता रहे है।