पिछला लोकसभा चुनाव याद कीजिए जिसमें गुजरात मॉडल से लेकर नए भारत निर्माण की बात कही जा रही थी। BJP ने तो खासकर सबको साथ लेकर चलने का वादा किया था जिसके तहत उन्होंने नारा दिया सबका साथ सबका विकास। मगर पांच साल बाद जब बीजेपी को दोबारा सत्ता हासिल करने की बात आई तो बीजेपी के सभी नेता ने हिंदू-मुस्लिम और भेदभाव वाली राजनीति शुरू कर दी।
इसकी सबसे पहले शुरूआत की खुद प्रधानमंत्री मोदी ने जहां उन्होंने साफ़ कहा कि एक हिंदू कभी आतंकवादी नहीं हो सकता जैसा बयान दिया। जिसके जवाब में पत्रकारों ने उन्हें महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे की याद दिलाई।
फिर पश्चिम बंगाल में BJP अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि हम बुद्ध, हिंदू और सिखों को छोड़कर देश के हर एक घुसपैठियों को हटा देंगे। शाह ने ये बयान था तो घुसपैठियों के लिए मगर उन्होंने तीन धर्मो का नाम लेकर बाकि सभी धर्म जैसे इसाई और मुस्लिम, पारसी के लिए इस देश में जगह नहीं होगी।
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इस बयान पर भी शाह की जमकर किरकरी हुई और उनकी इस बयान की चारों तरफा आलोचना हुई। जहां उन्हें नसीहत दी गई की हर धर्म के लोग भारतीय है क्योंकि ये देश आपसी भाईचारे से चलता है।
अब केंद्रीय मंत्री मेनिका गांधी ने यूपी के सुल्तानपुर के मुस्लिम बाहुल्य गांव तुराबखानी में आयोजित एक जनसभा को संबोधित किया। इस जनसभा में उन्होंने साफ़ कहा कि वो मुसलमानों के बिना भी चुनाव जीत रही हैं, इसलिए अब मुसलमानों को तय करना होगा कि वह उनके साथ हैं या नहीं।
साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि जब पता चलता है कि मुसलमान बीजेपी को वोट नहीं करता तो दिल खट्टा हो जाता है। फिर जब मुसलमान अपने काम लेकर हमारे पास आता है तो हम महात्मा गांधी नहीं हैं, नौकरी भी सौदेबाज़ी है।
मेनिका गांधी ने वहां मौजूद मुस्लिम समाज के लोगों से कहा, “हम खुले हाथ और खुले दिल के साथ आए हैं, आपको कल मेरी जरूरत पड़ेगी। ये इलेक्शन तो मैं पार कर चुकी हूं। अब आपको मेरी जरूरत पड़ेगी, अब आपको जरूरत के लिए नींव डालना है, तो सही वक्त है।
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क्या किसी सांसद को जो केंद्र में मंत्री पद पर हो उनका इस तरह से वोटरों को धमकी देना ठीक है? क्या बीजेपी के पास अब हिंदू मुस्लिम के अलावा कोई मुद्दा ही बचा है जिसे वो चुनावी मुद्दा बना सके?
आखिर ऐसे ज़रूरत क्यों आ जाती है कि एक राज्य का मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समाज को बांटने वाला बयान देते है, ‘जो अली का सहारा लेना चाहते हैं लें हमारे लिए बजरंग बली ही काफी हैं।’
क्या बीजेपी के पास अपना काम बताने के लिए कोई काम नहीं जिसके जरिए वो वोटरों से वोट की अपील कर पाए आखिर ज़िम्मेदार पदों पर बैठे लोग जो पिछले चुनाव तक सबका साथ सबका विकास की बात कर रहें थे।
वो अब ‘हिंदू-मुस्लिम-सिख-इसाई’ क्यों करने लगे? क्या मोदी सरकार और बीजेपी ने ऐसा ही न्यू इंडिया बनाने की कल्पना की थी जिसमें इंसाफ रोजगार और सुख धर्म देखकर दिया जायेगा।
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हालाकिं इतने बयानों के बाद पीएम मोदी ने एक टीवी इंटरव्यू में कहा था कि मैं हिंदू मुस्लिम देखकर काम नहीं करता मैं सभी देशवासियों के लिए काम करता हूँ मगर चुनावी रैली में खुद पीएम मोदी और उनके तमाम नेता ये बात भूल जाते है और धर्म के नाम पर राजनीति करते है।
जो आज सत्ताधारी दल कर रहा है उसी का डर शहीद भगत सिंह को था जब उन्होंने धर्म और जाति के नाम पर अवाम के विभाजन किए जाने की आशंका जताई थी।