लोकसभा चुनाव में इस बार उत्तर प्रदेश की लगभग हर सीट पर बीजेपी को बसपा-सपा और आरएलडी गठबंधन से टक्कर लेना है। ऐसा नहीं है कि बीजेपी अकेले है देश के कई हिस्सों में उसका गठबंधन कई छोटे बड़े दलों से हैं। मगर यूपी में मजबूत गठबंधन माने जा रहे बसपा-सपा और आरएलडी के मिलन से बीजेपी की सियासी ज़मीन कम से कम यूपी में खिसकती हुई नज़र आ रही है।

यूपी में इस बार मुकाबला त्रिकोणीय है एक तरफ केंद्रीय और राज्य की सत्ता में बैठी बीजेपी है तो दूसरी तरफ कांग्रेस जो यूपी में दम लगा रही हैं वहीं महागठबंधन, जोकि यूपी की हर सीट पर मजबूत स्थिति में नज़र आ रहा है।

क्योंकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश का सियासी गढ़ और जाटलैंड माने जाने वाली लोकसभा सीट बागपत पर इस बार पूरे देश की नज़र होगी। इसलिए पूर्व प्रधानमंत्री और किसान नेता चौधरी चरण सिंह की विरासत संभाल रही राष्ट्रीय लोकदल के लिए बड़ी चुनौतीहै।

महागठबंधन में बागपत लोकसभा सीट इस बार आरएलडी के खाते आई है। इसके पीछे की वजह है चौधरी चरण सिंह के पोते और अजित सिंह के बेटे जयंत चौधरी का इस सीट से लड़ना। जयंत इस बार बागपत सीट से सिर्फ चुनाव लोकसभा चुनाव नहीं लड़ रहे, उनके सामने लड़ाई अपनी खोई हुई सियासी ज़मीन को वापस पाने की भी है।

मुस्लिम बाहुल्य बिजनौर में अब तक सिर्फ एक मुस्लिम सांसद, बीजेपी और BSP को चुनौती दे सकेंगे नसीमुद्दीन ?

देश में कांग्रेस बागपत में चौधरी चरण सिंह

बागपत लोकसभा सीट आज़ादी के 20 साल बाद 1967 में अस्तित्व में आई पहले चुनाव में यहां से जनसंघ ने जीत हासिल की और दूसरे चुनाव में कांग्रेस ने जीत दर्ज की। मगर देश में आपातकाल के बाद 1977 में इस क्षेत्र की सियासत से करवट ली और साल 1977, 1980 और 1984 में लगातार पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह यहां से चुनाव जीतते चले गए।

चौधरी चरण सिंह ने बागपत लोकसभा सीट से पहली बार साल 1977 में कांग्रेस के राम चंद्र विकाल को 121538 वोटों के अंतर से हराया था। ये वही वक़्त तक जब आपातकाल के बाद केंद्र की सत्ता में जनता पार्टी की सरकार बनी और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने थे और चरणसिंह को देश का गृहमंत्री बने थे।

साल 1980 में चरण सिंह ने एक बार फिर कांग्रेस उम्मीदवार राम चंद्र को मात दी। इसके बाद साल 1984 में कांग्रेस उम्मीदवार महेश चंद को भी हरा दिया इस चुनाव में दोनों के बीच हार का फासला करीब 85674 वोटों का रहा।

हालाकिं ये भी दिलचस्प बात है की 1960 में चंद्रभानु गुप्ता की सरकार में उन्हें गृह तथा कृषि मंत्रालय दिया गया। चरण सिंह ने कांग्रेस में भी रहे, वो देश के एक ऐसे किसान नेता थे जो प्रधानमंत्री पद पर पहुंचे।

चौधरी चरण सिंह ने खुद कभी एक प्रधानमंत्री के तौर पर नहीं देखा। वो गांव, गरीब और किसान के शोषण के खिलाफ आवाज बुलंद करते थे मगर खुद को प्रधानमंत्री से ज्यादा एक किसान व सामाजिक कार्यकर्ता मानते थे। भारत के पांचवें प्रधानमंत्री बने चरणसिंह की व्यक्तिगत छवि एक ऐसे देहाती किसान की बात बड़ी सरलता के साथ रखते थे।

इसके बाद उनके बेटे अजीत सिंह जो विदेश से पढाई हासिल करने के बाद अपने पिता की राजनीति को आगे बढ़ाते हुए बागपत सीट से सांसद चुने गए और राष्ट्र की राजनीति में अपनी जगह बनाने सफल हुए।

अजीत सिंह कुल 6 बार बागपत लोकसभा सीट से सांसद चुने गए। साल 1989, 1991, 1996, 1999, 2004 और 2009 में अजित सिंह बागपत से सांसद रहे। सिर्फ 1998 में हुए चुनाव में यहां हार का सामना करना पड़ा। जहां उनको बीजेपी के उम्मीदवार सोमपाल सिंह शास्त्री ने हराया। जहां सोमपाल 264736 वोट मिले थे, वहीं अजीत सिंह को 220030 वोट मिले थे।

हालाकिं इसके बाद वो 2004, 2009 में भी भारी मतों जीते मगर साल 2014 वह तीसरे नंबर पर ही पहुंच गए। बीजेपी ने इस सीट पर एक बार से कब्ज़ा करते हुए अजीत सिंह को बागपत से दूर कर दिया। इस सीट से मुंबई पुलिस कमिश्नर के तौर पर मजबूत पहचान बनाने वाले सत्यपाल सिंह 42.2 वोट प्रतिशत हासिल करते हुए 423,475 से शानदार जीत दर्ज की।

वहीं समाजवादी पार्टी के गुलाम मोहम्मद 21.3 वोट प्रतिशत कुल 213,609, वोट हासिल किए। जबकि  चौधरी अजीत सिंह को 19.9 वोट प्रतिशत के साथ कुल 199,516,वोट मिले।

मौजूदा वक़्त में सत्यपाल सिंह बागपत सीट से सांसद है। सिंह 2012 से 2014 तक मुंबई पुलिस के कमिश्नर रहे। जो शिक्षा राज्य मंत्री और गंगा मंत्रालय में भी हैं। सत्यपाल सिंह ने पांच साल में लोकसभा में कुल 99 बहस में हिस्सा लिया।

इस दौरान उन्होंने 23 सवाल पूछे, सरकार की ओर से कुल 4 बिल पेश किए। जबकि 3 प्राइवेट मेंबर बिल भी पेश किए। सांसद निधि के तहत मिलने वाले 25 करोड़ रुपये के फंड में से उन्होंने कुल 79।24 फीसदी रकम खर्च की। खासबात ये रही की बागपत हासिल करने में बीजेपी को जीत दर्ज करने में 16 साल लग गए।

कांग्रेस नहीं उतारेगी उम्मीदवार!

बसपा, रालोद और सपा के गठबंधन ने जिस तरह अमेठी और रायबरेली की सीट कांग्रेस के लिए छोड़ दी, उसी तर्ज पर अब कांग्रेस भी एक या दो महत्वपूर्ण सीटों को छोड़ सकती है। ऐसे में कहा जा रहा है की कांग्रेस रालोद के गढ़ बागपत लोकसभा सीट भी छोड़ सकती है।

अब सवाल उठता है कि अगर कांग्रेस की तरफ से प्रत्याशी मैदान में उतारा भी गया तो मुस्लिम के बजाए ब्राह्मण, त्यागी या गुर्जर चेहरे को टिकट देने की अधिक संभावना हैं।

अब देखना दिलचस्प ये होगा की बागपत में जयंत की जय होती या फिर बीजेपी के सत्यपाल सिंह एक बार फिर से जीत हासिल करते हैं।

उनके खाते में हाल की जीतों में सिर्फ कैराना उपचुनाव की उपलब्धि है। जहां से महागठबंधन को और बल मिला और रालोद की उम्मीदवार सपा के टिकट से संसद पहुंची।

बता दें कि 5 विधानसभा सीटों वाली बागपत में 16 लाख से भी अधिक वोटर हैं। जाट समुदाय के वोटरों के बाद यहां मुस्लिम वोटरों की संख्या सबसे अधिक है।

इन विधानसभाओं में सिवालखास, छपरौली, बड़ौत, बागपत और मोदीनगर विधानसभा सीट शामिल है। इसमें सिवालखास मेरठ जिले की और मोदीनगर गाजियाबाद जिले से आती हैं। इनमें रालोद ने 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में सिर्फ छपरौली में जीत हासिल की थी, जबकि बाकी 4 सीटों पर बीजेपी को जीत हासिल हुई थी।

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