साधु संतों की सत्ता वाले उत्तर प्रदेश में पिछले 4 सालों में 42 साधु संतों की हत्या हो गई। किसी की गोली मारकर हत्या हुई तो किसी का संदिग्ध हालत में शव मिला।

सबसे ज्यादा गौर करने वाली बात यह है कि यह हत्याएं सल्तनत और सत्ता की वजह से हुई है, सोचिए यदि यही हत्याएं बसपा सपा कांग्रेस या अन्य पार्टियों में हुई होती तो शीशे में बैठी गोदी मीडिया अलग-अलग तरीकों से बरगला रही होती ।

लेकिन वर्तमान समय में 4 सालों में 42 साधु संत की हत्या पर मीडिया को जैसे सांप सूंघ गया।

4 सालों में 42 साधु संतों की हत्या पर प्रतिक्रिया देते हुए समाजवादी पार्टी ने योगी राज को जंगल राज करार देते हुए ट्वीट किया कि “4 साल के भीतर प्रदेश के विभिन्न जिलों में 42 साधु-संतों की हत्या हुई है.”

अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि की मौत के बाद राजनीति जोरों पर है. समाजवादी पार्टी ने योगी राज को जंगल राज करार देते हुए ट्वीट किया कि “यूपी की BJP सरकार का जंगलराज, देवकार्य में लगे साधुओं पर जानलेवा वार, पूरा कार्यकाल, बना काल!

पिछले चार सालों में 42 साधु – संतों की हत्या. किसी को मारी गोली, तो किसी की संदिग्ध हालातों में रहस्मयी मौत. अभी तक किसी को क्यों नहीं मिला न्याय? जवाब दे सरकार.

साथ ही बता दें मठ-मंदिरों की संपत्ति हथियाने को लेकर अयोध्या में 12 से ज्यादा महंतों की हत्या हो चुकी है। यह सिलसिला 80 के दशक से शुरू हुआ।

सबसे ज्यादा मामले हनुमानगढ़ी से जुड़ी संपत्ति पर कब्जेदारी को लेकर हुए। सभी हत्याओं में कहीं न कहीं मठ से जुड़े शिष्य थे।

विवाद के कारण यहां के कई मंदिरों में कोर्ट के आदेश से रिसीवर नियुक्त कर दिए गए हैं। 1982 से हनुमान गढ़ी में ताबड़तोड़ महंतों के ऊपर जानलेवा हमले होने लगे।

1984 में बसंतिया पट्टी के महंत शुभकरण दास की हत्या कर लाश हनुमानगढ़ी परिसर स्थित कुएं में फेंक दी गई थी। इस हत्या में मठ के उपेंद्र दास समेत कई लोगों को अभियुक्त बनाया गया था।

1987 में सागरीय पट्टी के हरि भजन दास, 1990 में उज्जैनिया पट्टी के बाबा बजरंग दास और 1999 में महंत रामाज्ञा दास की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।

1988 में सनातन मंदिर के महंत मोहन चंद्र झा और 90 के दशक आते-आते लाडली मंदिर के महंत जगत नारायण दास की हत्या दिनदहाड़े हनुमानगढ़ी के पास कर दी गई थी।

1996 में शुक्ल मंदिर के महंत राम शंकर दास की दिनदहाड़े हत्या कर दी गई थी। उनका विवाद काफी समय से मंदिर पर कब्जे को लेकर चल रहा था।

1997 में बाबा राम कृपाल दास की दिनदहाड़े हत्या अयोध्या के राम घाट इलाके में कर दी गई थी। इस हत्या में मंदिर पर कब्जे का विवाद सामने आया था।

मई, 2000 में महंत जगदीश दास की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।

28 मई, 2000 को मणिराम दास छावनी के महंत नृत्य गोपाल दास पर जानलेवा हमला राम की पैड़ी के निकट अहिल्याबाई घाट पर उस समय किया गया था, जब वे अपने शिष्यों के साथ सरयू स्नान के लिए जा रहे थे। इस हमले के पीछे महंत देवराम दास वेदांती का षड्यंत्र बताया गया था ।

2001 में कनीगंज स्थित सोना मंदिर के महंत का अपहरण कर लिया गया था, जिनका आज तक पता नहीं चला। यह वारदात भी मंदिर पर कब्जे के विवाद को लेकर की गई थी।

2018 में विद्या कुंड क्षेत्र स्थित विद्या माता मंदिर के संत राम चरण दास की गला घोंट कर हत्या कर दी गई। इस मामले में भी मंदिर के एक साधु परमात्मा दास को गिरफ्तार किया गया था।

4 अप्रैल, 2021 की सुबह हनुमान गढ़ी की बसंतिया पट्टी के गुलचमन बाग के संत बाबा कन्हैया दास की हत्या कर शव गौशाला में छुपाया गया था। इसमें भी इनके गुरुभाई अखिलेश और गोलू दास पकड़े गए।

हालांकि यह साधु संतों की हत्या का सिलसिला 80 के दशक से हैं लेकिन बीते 4 सालों में कथित साधु-संतों की भाजपा सरकार में जो हत्याएं हुए हैं बहुत बड़े सवाल खड़े करती हैं?

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