
अपने ही देश में जहाँ एक तरफ़ हिंदी सिनेमा के बेहतरीन अदाकार नसीरूद्दीन शाह को अपनी बात रखने के लिए मीडिया भी किसी ट्रोलर की तरह ट्रोल कर रही है तो वहीं कुछ जाने-माने लोग नसीर के साथ भी खड़े हैं। उनमें से एक नाम है अभिनेता आशुतोष राणा का।
पत्रकारों से बात करते हुए मशहूर अभिनेता ने नसीरुद्दीन शाह का साथ देते हुए कहा है कि, लोकतंत्र में सबको अपनी बात कहने का हक़ है। ज़ख़्म, ग़ुलाम, राज़, कसूर, धड़क, सिम्बा और मुल्क जैसी फ़िल्मों में काम कर चुके एक्टरक आशुतोष राणा ने कहा-
“यह एक लोकतांत्रिक देश है और यहाँ सभी को अपनी बात रखने का पूरा हक़ है। अगर अपनी बात रखने के लिए किसी का सामाजिक ट्रायल किया जाता है तो वो ग़लत है। सबको अपने मन की बात कहने का हक़ है और आज़ादी का मतलब भी यही होता है।
घर या परिवार के किसी सदस्य की तरफ़ से कोई प्रतिक्रिया आती है तो उस पर विचार होना चाहिए। मन की बात कहने पर इस तरह का विवाद खड़ा करने से क्या देश की अर्थव्यवस्था सुधर जाएगी या आमदनी बढ़ जाएगी?
इसलिए हम सबके किसी के मन की बात का सामाजिक ट्रायल नहीं करना चाहिए, बल्कि उसकी बात गम्भीरता से सुननी चाहिए।“
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जब ज़्यादातर लोग नसीरूद्दीन शाह के ख़िलाफ़ खड़े हैं और उन्हें पाकिस्तान भेज देना चाहते हैं ऐसे में आशुतोष राणा का उनके साथ आना वाक़ई क़ाबिल-ए-तारीफ़ है। हिम्मत चाहिए इसके लिए।
आशुतोष के अलावा मुल्क फ़िल्म के राइटर-डायरेक्टर अनुभव सिंहा ने भी नसीर के पक्ष में ट्वीट करते हुए बॉलीवुड को कटघरे में खड़ा किया। उन्होंने लिखा-
“जब SRK या आमिर या नसीर को ट्रोल किया जाता है सिर्फ़ इसलिए क्योंकि वो लोग अपने ही समाज की कुछ ख़ामियाँ बताते है तब हम (Bollywood) एकजुट नहीं होते। लेकिन जीएसटी में कटौती होती है तो हम लाइन में खड़े रहते हैं गाना बजाने के लिए। हम साथ हैं या नहीं?”
इनके अलावा स्वारा भास्कर और ऋचा चड्ढा भी नसीरुद्दीन शाह के साथ खड़ी नज़र आईं।
क्या कहा था नसीरुद्दीन शाह ने-
“ये ज़हर फैल चुका है . इस जिन्न को दोबारा बोतल में बंद करना मुश्किल होगा . खुली छूट मिल गई है क़ानून को अपने हाथों में लेने की . कई इलाक़ों में हमलोग देख रहे हैं कि एक गाय की मौत को ज़्यादा अहमियत दी जाती है एक पुलिस ऑफ़िसर की मौत के बनिस्बत .
मुझे फ़िक्र होती है अपनी औलाद के बारे में सोचकर ,क्योंकि उनका मज़हब ही नहीं है . मज़हबी तालीम मुझे मिली और रत्ना को कम मिली या बिल्कुल भी नहीं मिली क्योंकि एक लिबरल हाउसहोल्ड था उनका . हमने अपने बच्चों को मज़हबी तालीम बिल्कुल भी नहीं दी . मेरा ये मानना है कि अच्छाई और बुराई का मज़हब से कोई लेना देना नहीं है . अच्छाई और बुराई के बारे में जरूर उनको सिखाया . हमारे जो बिलीव्स हैं , दुनिया के बारे में हमने उनको सिखाया . क़ुरान की एक आध आयतें जरूर सिखाई क्योंकि मेरा मानना है कि उसे पढ़कर तलफ्फुज सुधरता है , जैसे हिन्दी का सुधरता है रामायण या महाभारत पढ़कर .
फ़िक्र होती है मुझे अपने बच्चों के बारे में . कल को अगर उन्हें भीड़ ने घेर लिया कि तुम हिन्दू या मुसलमान ? तो उनके पास तो कोई जवाब ही नहीं होगा क्योंकि हालात जल्दी सुधरते मुझे नज़र नहीं आ रहे हैं .
अगर नसीरूद्दीन शाह का कहा आपको चुभ रहा है तो यक़ीन मानिए आप अख़लाक और पहलू खान के हत्यारों के हमदर्द हैं
इन बातों से मुझे डर नहीं लगता . ग़ुस्सा आता है . मैं चाहता हूँ कि हर राइट थिंकिंग इंसान को ग़ुस्सा आना चाहिए . डर नहीं लगना चाहिए . हमारा घर है . हमें कौन निकाल सकता है यहाँ से”
नसीरुद्दीन के बातों को ग़ौर से पढ़िए। एक हिंदुस्तानी होने के नाते सोचिए कि उन्होंने क्या ग़लत कहा? क्या उन्होंने ऐसी कोई बात कही है जिससे उन्हें पाकिस्तान भेज देने की सलाह मिलनी चाहिए?
उन्होंने ते बस अपनी फ़िक्र ज़ाहिर की है। वो फ़िक्र जो हम सबको हैं कि पता नहीं, कब, कहाँ कौन सी भीड़ मिल जाए और ज़ात-मज़हब के नाम पर हमें बर्बाद कर छोड़े।