असम में लोकसभा चुनाव का पहले चरण में होना है। लेकिन इससे पहले ही असम के बिश्वनाथ चारीली इलाके में मॉब लिंचिंग की दर्दनाक घटना सामने आयी है।

11 अप्रैल के मतदान से ठीक 3 दिन पहले यानी 7 अप्रैल को भीड़ ने एक मुस्लिम व्यक्ति हमला कर दिया। पीड़ित की पहचान शौकत अली के रूप में हुई है।

पुलिस के मुताबिक शौकत पिछले 35 सालों से इलाके के साप्ताहिक हाट में पका हुआ मांस बेचता है। हिंसक हिंदूवादी भीड़ ने कथित तौर पर गोमांस बेचने के शक में शौकत अली बीच सड़क पर बुरी तरह पीटा। जबकि असम में गाय, बैल, भैंस का मीट खाने और बेचने पर प्रतिबंध नहीं है।

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इस घटना की वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। राजनीतिक और मीडिया के माध्यम से समाज में जहर बोई गई है उसका कुप्रभाव इस वीडियो में देखने को मिल रहा है। भीड़ शौकत से बार बार पूछ रही है कि क्या वो वह बांग्लादेशी है? क्या उसके उसके पास लाइसेंस है?

वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि भीड़ में से कुछ लोग शौकत को बुरी तरह पीट रहे हैं। वहीं कुछ लोग सवाल पर सवाल दागे जा रहे हैं। बीच सड़क पर कीचड़ से लथपथ शौकत का चेहरा खौफजदा नजर आ रहा है।

इन सब के बीच किसी ने शौकत को एक पैकेट से खाना खाने के लिए मजबूर किया। बताया जा रहा है कि यह सुअर का मांस था जिसे भीड़ ने शौकत को खिलाई। घायल शौकत अली का इलाज असम के एक स्थानीय अस्पताल में चल रहा है।

क्या इस घटना के बाद शौकत किसी नेता के ‘सबका साथ, सबका विकास’ जैसे नारों पर यकीन कर पाएंगे? भीड़ द्वारा बीच सड़क पर फैसला करने का तरीका लोकतंत्र का हिस्सा तो नहीं है। फिर इस भीड़ को ताकत कहां से मिल रही है? क्यों इस भीड़ में कानून का डर नहीं? क्या इस भीड़ को सत्ता का संरक्षण प्राप्त है?

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क्या इस भीड़ को भरोसा है कि अगर किसी तरह कानून कार्रवाई हुई भी तो केंद्रीय मंत्री फूल-माला मिठाई से स्वागत करेंगे ही? क्या इस भीड़ को भरोसा है कि हत्या का आरोप होने के बाद भी सत्ताधारी बीजेपी उनका स्वागत करेगी ही?

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