प्रशांत कनौजिया

“न्यायपालिका के फैसले का सम्मान करता हूँ” यह झूठ बोलना पड़ा

6 दिसंबर बाबरी मस्जिद विध्वंश भारत के ऊपर लगा कलंक या कहें कि किसी आतंकवादी घटना से कम नहीं था, जब संविधान, क़ानून और न्यायपालिका को ताक पर रखकर भीड़ ने सैकड़ों साल से खड़ी बाबरी मस्जिद को गिरा दिया। हम में से कई लोग उस समय पैदा नहीं हुए थे और कुछ लोग इतने छोटे थे कि इस बात पर ध्यान देने योग्य नहीं थे। मस्जिद का गिरना महज किसी इबादत गाह का समतल होना नहीं था बल्कि देश के एक अल्पसंख्यक तबके को संदेश था कि क़ानून और विधान होने के बावजूद हम इसी मस्जिद की तरह तुम्हें भी मिट्टी में मिला सकते हैं।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला किसी को आश्चर्यचकित नहीं कर पाया। मानो जैसे सब को पता था कि सुप्रीम कोर्ट क्या फैसला सुनाएगा। हम बचपन से सुनते आए हैं और फिल्मों में भी देखा है कि अदालत भावनाओं या आस्था से नहीं बल्कि सुबूतों के आधार पर फैसला करती है। बाबरी के फैसले ने कम से कम मेरे इस अज्ञानता को दूर करने का काम किया है। फैसले की कॉपी पढ़ना और रामानंद सागर का धारावाहिक देखना एक समान लग रहा था। ख़ैर अब तो कुछ नहीं हो सकता। न्यायलय का सम्मान करता हूँ यह झूठ तो बोलना ही पड़ेगा।

अदालत ने फैसले में मुस्लिम पक्ष को 5 एकड़ ज़मीन दी है। यह बेहद हास्यास्पद लगा रहा था। यह संदेश उन सभी अल्पसंख्यक समुदाय के लिए भी हो सकता है कि कल आपकी ज़मीन पर खड़े आपके घर को भी इसी तरह गिरा दिया जाएगा और आस्था को आधार बनाकर उनसे उनकी ज़मीन भी छीन ली जाएगी। हम को फिर वो झूठ दोहराना होगा कि हम न्यायपालिका के फैसले का सम्मान करते हैं।

आप लोग सोच रहे होंगे कि मैं बाबरी क्यों लिख रहा हूँ? क्योंकि मैंने अपनी आंखों से वहां बाबरी को देखा है। आज़ादी के बाद से वो खड़ी रही फिर कुछ आतंकी द्वारा गिरा दी गई। न्यूज़ चैनल की डिबेट में सिर्फ मंदिर उसका प्रारूप या उसके काल्पनिक इतिहास की चर्चा है, लेकिन इस मामले में हम सबसे महत्वपूर्ण बात भूल गए कि अदालत ने यह भी कहा कि बाबरी विध्वंश गैरकानूनी था? यह बयान हास्यास्पद लगा कि ग़ैरकानूनी? एक आतंकी हमले को इतना नरम शब्द देना भी ग़ैरकानूनी होना चाहिए।

अगर क़ानून की किताब में वो ग़ैरकानूनी था तो उसको गिराने वाले और उस भीड़ का नेतृत्व करने वालों को कब सजा मिलेगी? यह सवाल भी भारत के बदन पर लगा दाग है जो सदियों तक नहीं मिटेगा। भीड़ को ज़मीन समतल करने की नसीहत देने वाले अटल बिहारी का भारत रत्न कब वापस लिया जाएगा? एक ग़ैरकानूनी काम करने वाला भारत रत्न कैसे हो सकता है? वो तो भारत का शर्म होना चाहिए।

बाबरी विध्वंस को राम जन्मभूमि आंदोलन बनाने में हमारे हिंदी अखबारों का बहुत बड़ा योगदान है। अगर आप उस दौर के अखबारों के हेडलाइन को पढ़ें तो आपको ऐसा लगेगा कि पत्रकार अंदर कारसेवक ही है बस उसका काम मस्जिद तोड़ना नहीं बल्कि भारत के भीतर सौहार्द तोड़ना है।

आप और मेरे जैसे बहुत लोगों को इस फैसले से धक्का तो ज़रूर लगा है। संविधान पर अटूट विश्वास कम तो जरुर हुआ है। अंबेडकर की वो लाइन जरूर याद आती है कि संविधान कितना भी अच्छा हो लेकिन उसको लागू करने वाले गलत लोग होंगे तो वो गलत ही साबित होगा।

फैसला आने के बाद मुस्लिम समाज बहुत कुछ बोलना चाहता था लेकिन बहुसंख्यक समाज ने उसपर ही शांति कायम करने की नैतिक जिम्मेदारी डाल दी। कहीं कुछ नहीं हुआ लेकिन अगर फैसला उल्टा होता तो शांति की अपील भी नहीं होती। नज़ारा कुछ और होता। ख़ैर हम को तो चुप रहना था। बिगाड़ के डर से ईमान तो नहीं बेचा जा सकता न?

भारत और संविधान की आत्मा पर लगा यह दाग मिटाने के लिए कोई डिटेरजेंट इजाद नहीं हुआ है। यह सवाल हमारे मुल्क पर मंडराता रहेगा कि कमजोर को न्याय क्यों नहीं दिया गया? यह सवाल आने वाली पीढ़ी जरूर पूछेगी, तो हम उसी झूठ को दोहराएंगे कि न्यायपालिका के फैसले का सम्मान करता हूँ।

(प्रशांत कनौजिया स्वतंत्र पत्रकार हैं। लेख में व्यक्त किए गए ये विचार उनके निज़ी हैं।)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here