गिरीश मालवीय

आपसे 1 कश्मीर संभल नही रहा है और अब नए नागरिकता संशोधन विधेयक से आप 7 नए कश्मीर बनाने जा रहे हैं……बहुत कम लोगो को मालूम है कि इस नए नागरिकता संशोधन विधेयक का सबसे कड़ा विरोध पूर्वोत्तर में हो रहा है लेकिन हमारा मीडिया इतना बिका हुआ है कि इस बारे में कोई खबर भी नही दिखा रहा है. वह इस नए नागरिकता संशोधन विधेयक के दुष्परिणाम क्या होंगे उसके बारे जरा सी बात करने को तैयार नही है! पूर्वोत्तर भारत में इसके खिलाफ लगातार विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. लेकिन शेष भारत का मीडिया इन प्रदर्शन को नजरअंदाज कर रहा है,

सेवन सिस्टर कहे जाने पूर्वोत्तर के हर राज्य में इसके खिलाफ व्यापक असन्तोष है नगालैंड में भी नागरिकता विधेयक के विरोध में कुछ प्रमुख संगठनों के बहिष्कार के आह्वान के कारण पिछले गणतंत्र दिवस समारोह में छात्र-छात्राओं और आम जनता ने समारोहों में भाग नहीं लिया.

पूर्वोत्तर के लोगों को डर है कि इस विधेयक के कानून बनने के बाद इनके राज्यों में विदेशियों की तादाद अचानक बढ़ जाएगी जिससे यहां की आबादी का अनुपात बदल जाएगा.

आपको इस बारे में यह समझने की जरूरत है कि पूर्वोत्तर की शरणार्थी समस्या कभी भी हिन्दू वर्सेज मुस्लिम नही थी यह मुद्दा हमेशा से स्थानीय वर्सेज बाहरी ही रहा है

सबसे अधिक चिंता की बात भी यही है कि मूल रूप से एनआरसी और नागरिकता संशोधन विधेयक में परस्पर विरोधाभास है. एनआरसी में धर्म के आधार पर शरणार्थियों को लेकर कोई भेदभाव नहीं है. NRC के मुताबिक, 24 मार्च 1971 के बाद अवैध रूप से देश में घुसे अप्रवासियों को निर्वासित किया जाएगा. चाहे वह किसी जाति धर्म के हो लेकिन इस नए नागरिकता विधेयक में बीजेपी धर्म के आधार पर शरणार्थियों को नागरिकता देने जा रहीं है जिससे इस क्षेत्र के मूल निवासियों के अधिकारों का हनन होगा ओर एक नया संघर्ष पैदा हो जाएगा.

नागरिकता (संशोधन) विधेयक 1985 के असम समझौते का उल्लंघन करता है. जिसके आधार पर देश भर में NRC लागू करने की बात की जा रही है सरकार की ओर से तैयार किया जा रहा राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRC) और असम समझौता ये दोनों धर्म को आधार नहीं मानते. ये दोनों किसी को भारतीय नागरिक मानने या किसी को विदेशी घोषित करने के लिए 24 मार्च, 1971 को आधार मानते हैं. असम समझौता बिना किसी धार्मिक भेदभाव के 1971 के बाद बाहर से आये सभी लोगों को अवैध घुसपैठिया ठहराता है. जबकि नागरिकता संशोधन क़ानून बनने के बाद 2014 से पहले आये सभी गैर मुस्लिमों को नागरिकता दी जा सकेगी, जो कि असम समझौते का उल्लंघन होगा.

कल सुप्रीम कोर्ट के वकील उपमन्यु हजारिका ने आज तक के कॉन्क्लेव में कहा कि बांग्लादेश से आए मुस्लिमों को आपने एनआरसी से बाहर कर दिया लेकिन बांग्लादेश से आए हिंदुओं को आप नागरिकता देने जा रहे हैं तो यह बेहद हास्यास्पद बात है…….. वह आगे कहते हैं कि ‘पूर्वोत्तर के मामले में अब यह नया सिटीजनशिप अमेंडमेंट बिल भारतीय नागरिकों से कह रहा है कि आपके साथ जो हुआ उससे हमें कोई लेना-देना नहीं. बल्कि भारतीय नागरिकों की जगह उन विदेशी नागरिकों को प्राथमिकता देने जा रहा है जो बाहर से आए हैं. इसीलिए आज इसका विरोध हो रहा है’

लेकिन अब इस देश समझदारी की बात करना,न्याय की बात करना मूर्खता है आप सिर्फ भावनाओं के आधार पर बात कीजिए तो ही सही है

दरअसल यह सारी योजना संघ की बनाई हुई है इस विधेयक के पारित होने के बाद देश मे हिन्दू ओर मुस्लिम के बीच एक ऐसी लकीर खिंच जाएंगी जो किसी के मिटाने से भी मिटा नही पाएगी यही संघ का असली एजेंडा है दरअसल असम में एनआरसी की फ़ाइनल सूची से जो 19 लाख लोग बाहर रह गए हैं, उनमें बड़ी संख्या में हिंदू शामिल हैं अब उन्हें जैसे तैसे कर के अंदर लेना है इसलिए इस विधेयक को बेहद फुर्ती के साथ पास कराने की कोशिश की जा रही है यदि इस बिल को लागू किया जाता है तो इससे पहले से अपडेटेड नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस (NRC) बेअसर हो जाएगा ओर यही संघ ओर भाजपा का मूल उद्देश्य है

भाजपा पूर्वोत्तर में एक ऐसे संघर्ष को शुरू कर रही है. जो दूसरी कश्मीर समस्या को जन्म दे देगा और हिंसा और आतंकवाद का एक नया दौर शुरू हो जाएगा जिसकी आग बुझाए से नही बुझेगी………..

(ये लेख गिरीश मालवीय के फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है)

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