जिसने वादा किया कि ‘सौगंध मुझे इस मिट्टी की, मैं देश नहीं बिकने दूंगा’, वही शख्स अगर रेलवे स्टेशनों, हवाईअड्डों, नवरत्न कंपनियों की बोली लगाने लगे तो आपको शक करना चाहिए.

सरकार सब बेचकर ठीक कर रही है, ऐसा कहने से पहले इस बिंदुओं पर भी सोचें.

अमेरिका में कैम्ब्रिज एनालिटिका स्कैंडल याद है? फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग को अमेरिकी संसद में बुलाया गया और उनसे पांच घंटे पूछताछ की गई.

आरोप था कि फेसबुक से करोड़ों लोगों की निजी जानकारी लीक हुई और उसका सियासी दुरुपयोग हुआ. फेसबुक के जरिये ‘राजनीतिक सेंसरशिप’ का काम किया गया.

इस संबंध में अमेरिका और ब्रिटेन में जुकरबर्ग तलब किए गए और उन्हें संसद में जाकर जवाब देना पड़ा और उनकी जवाबदेही तय की गई. जुकरबर्ग को यूरोपीय यूनियन में भी तलब किया गया.

ब्रिटेन और अमेरिका में सख्त कानून बनाने को लेकर चर्चाएं हुईं. जुकरबर्ग को ‘डिजिटल गैंगस्टर’ कहा गया.

डाटा के गलत इस्तेमाल, चुनावों में हस्तक्षेप, फेक न्यूज, साइबर बुलिंग और टैक्स की चोरी के आरोपों के बाद उनसे पूछताछ हुई. इसके बावजूद नरमी बरतने के लिए यूरोपीय सांसदों की आलोचना हुई.

डायचे वेले ने लिखा, ‘जब यूरोपीय संसद में मार्क जकरबर्ग की पेशी हुई, तो सांसदों ने दिखाया कि वे कितने कमजोर हो सकते हैं’.

भारत में भी ऐसे आरोप हैं, बल्कि इससे गंभीर आरोप हैं कि सत्तारूढ़ पार्टी के पक्ष में सांप्रदायिक सामग्री को प्रसारित किया गया, जिससे समाज को बांटने में मदद मिलती है.

क्या भारत में ऐसा संभव है कि जुकरबर्ग को संसद तलब कर ले? भारत में एक उद्योगपति को प्रधानमंत्री की पीठ पर हाथ फेरते हुए सबने देखा था, लेकिन क्या कभी किसी उद्योगपति को संसद से नोटिस भेजा गया? फिलहाल हम इसकी कल्पना नहीं कर सकते. हम बस ये सुनते हैं कि कॉरपोरेट सत्ता को कंट्रोल कर रहा है.

जिन देशों ने खू​ब निजीकरण किया है, उन्होंने सख्त रेग्युलेशन किया है. उनकी संस्थाएं कमजोर नहीं हैं. वे कानून बनाकर सूचना आयुक्तों, लोकपालों और जांच एजेंसियों की शक्तियां नहीं छीनते. उसे मजबूत करते हैं.

यूरोप के ज्यादातर देशों में शिक्षा और स्वास्थ्य की जिम्मेदारी सरकार की है. निजीकरण के बावजूद वे कल्याणकारी राज्य की जिम्मेदारियों से नहीं भागते. क्या भारत में निजीकरण के मद्देनजर सख्त रेग्युलेशन किया गया या इसकी कोई योजना है?

भारत यूरोप नहीं है. भारत गरीब देश है. करोड़ों लोगों के लिए रोजी रोटी ही सबसे बड़ा सवाल है. लोगों को शिक्षा, स्वास्थ्य, भोजन जैसी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं. वे सरकार की मदद के बिना इनसे नहीं निपट सकते?

क्या आपको लगता है कि शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन, बिजली, पानी, रेलवे जैसी बुनियादी सेवाएं प्राइवेट हाथों में दे दी जानी चाहिए?

(ये लेख पत्रकार कृष्णकांत के फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है)

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