Tanya Yadav
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘नए भारत’ में बेरोज़गारी अब आम बात हो चुकी है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार हर महीने लाखों लोगों की नौकरियां जा रही हैं।
सीएमआईई (सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी) के डाटा के अनुसार, जुलाई महीने में ही लगभग 32 लाख वेतनभोगी लोगों की नौकरियां चली गई हैं।
दरअसल, सीएमआईई ने अपनी रिपोर्ट जारी कर बताया है कि कोरोना की दूसरी लहर में कमी आने के बावजूद देश को जुलाई में 32 लाख वेतनभोगी नौकरियों का नुकसान हुआ है।
रिपोर्ट के मुताबिक जून 30 तक 7 करोड़ 97 लाख लोगों के पास वेतनभोगी नौकरियां थी। जुलाई 31 तक ये संख्या घटकर 7 करोड़ 64 लाख रह गई।
इसका एक कारण मुख्य क्षेत्रों के सिस्टम की कमजोरी भी है। यही वजह है कि अब लोग स्वरोजगार (सेल्फ-एम्प्लॉयमेंट) और ‘कैजुअल’ कामों की तरफ रुख कर रहे हैं। तभी छोटे व्यापारियों और दिहाड़ी मज़दूरों की संख्या में 24 लाख की बढ़ौतरी हुई है।
इसका मतलब साफ है: जो थोड़े-बहुत नए रोज़गार आ भी रहे हैं, उनमें न तो स्थिरता है और न ही वो अच्छा कमाने का ज़रिया हैं।
* 2 साल में एक करोड़ से ज़्यादा वेतनभोगी नौकरियां हुई खत्म *
ध्यान देने वाली बात है कि कोरोना महामारी और सरकार की लापरवाही के कारण भी बहुत से लोगों की नौकरियां चली गई हैं, जिनके पास नौकरियां बची हैं वह उसे प्रिविलेज से कम नहीं मानते।
कोरोना महामारी से पहले, जुलाई 2019 तक देश में 8 करोड़ 6 लाख से ज़्यादा लोगों के पास वेतनभोगी नौकरियां थी।
जुलाई 2021 आते-आते ये संख्या 7 करोड़ 6 लाख तक जा पहुंची है। यानि केवल दो साल में एक करोड़ से ज़्यादा लोगों ने अपनी वेतनभोगी नौकरियां खो दी हैं।
इस देश में गैर-वेतनभोगी नौकरियां करने वाले लोगों का ख़ासा ध्यान नहीं रखा जाता। मज़दूरों और किसानों के हालातों का सच तो सबके सामने पहले से ही आ गया है।
एक तरफ लॉकडाउन के बाद भूखे मज़दूरों को सड़कों पर निकलने के लिए मजबूर होना पड़ा था, तो दूसरी तरफ महीनों से किसान कृषि कानूनों के खिलाफ सड़कों पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। चुनावों वादों से परे, सरकार इनकी ज़रूरतों पर ध्यान नहीं दे रही है।