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बिना किसी तैयारी के अचानक किए गए लॉकडाउन के बारे में आलोचकों का कहना था कि ये कोरोना से भी ज़्यादा घातक हो सकता है। आलोचकों ने आशंका जताई थी कि लॉकडाउन को लेकर अगर सरकार की ओर से ठोस क़दम नहीं उठाए गए तो इससे बड़ी तादाद में मज़दूर और कामगारों की जान जा सकती है। आलोचकों की ये बात अब काफी हद तक सही साबित होती नज़र आ रही है।

लॉकडाउन के चलते लगातार मजदूरों की मौत की खबरें सामने आ रही हैं। कहीं पलायन कर रहे प्रवासी मज़दूर सड़क हादसों में अपनी जान गंवा रहे हैं तो कहीं लॉकडाउन से उत्पन्न हुई हताशा उनकी जान लेती नज़र आ रही है।

ताज़ा मामला गुजरात के सूरत से सामने आया है। जहां एक ही दिन में तीन कामगारों ने लॉकडाउन से परेशान होकर खुदकुशी कर ली। हिंदी अख़बार दैनिक भास्कर में छपी खबर के मुताबिक़, ये तीनों कामगार लॉकडाउन की वजह से बेरोजगार हो गए थे। नौबत ये आ गई थी कि इनके पास खाने तक के पैसे नहीं बचे थे।

ये लोग अपने गांव वापस जाना चाहते थे, लेकिन इनके पास घर जाने के लिए टिकट तक के पैसे नहीं थे। जिसकी वजह से ये बेहद परेशान थे, इसी परेशानी के चलते इन्होंने मौत को गले लगाने का फैसला किया और फांसी के फंदे पर लटक कर अपनी ज़िन्दगी समाप्त कर ली।

जिन तीन लोगों ने खुदकुशी की है उनमें एक उत्तर प्रदेश के बांदा ज़िले का सुधीर सिंह है, जिसकी उम्र 28 साल बताई जा रही है। सुधीर सूरत के सचिन जीआईडीसी के रामेश्वर कॉलोनी में रहता था। लॉकडाउन के बाद उसका काम बंद हो गया था। जिसके बाद वो घर वापस जाना चाहता था, लेकिन पैसे ना होने की वजह से वो टिकट नहीं ले पा रहा था। उसके पास इतने भी पैसे नहीं थे कि वो खाना सके। इसी से परेशान सुधीर ने 15 मई को फांसी लगाकर खुदकुशी कर ली।

इसी तरह मूल रूप से महाराष्ट्र के रहने वाले 55 वर्षीय रोहिदास लिगाले और पर्वत गांव के 60 वर्षीय सुभाष प्रजापति ने भी लॉकडाउन से उत्पन्न हुई परेशानियों के चलते खुदकुशी कर ली। ये दोनों भी लॉकडाउन के बाद बेरोजगार हो गए थे और इनके पास खाने तक के पैसे नहीं बचे थे।

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