जनसरोकारों को आंदोलन का रूप देने वाली पत्रकारिता इन दिनों अपनी विश्वसनीयता खोती जा रही है। इसकी वजह ये है कि पत्रकारिता में अब जनसरोकार सर्वपरी नहीं बल्कि कमर्शियल इंटरेस्ट को तरजीह दी जा रही है।

मीडिया संस्थानों के मालिकों के इस कमर्शियल इंटरेस्ट की वजह से मौजूदा दौर की पत्रकारिता के स्तर में भारी गिरावट देखने को मिली है। पहले पत्रकार जनता के हितों के लिए सत्ता से सवाल करते थे और अब सवाल सत्ता में बैठे लोगों को बचाने के लिए विपक्ष से किए जा रहे हैं।

पत्रकारिता के स्तर में गिरावट का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिन पत्रकारों की ज़िम्मेदारी सत्ता की नीतियों पर सवाल खड़े करने की है वह विपक्ष के नेताओं को बदनाम करते नज़र आ रहे हैं। सत्ता की गोद में बैठे चैनलों से रोज़ विपक्ष के एक नेता को निशाना बनाया जाता है।

चैनलों से विपक्ष के नेताओं को कभी सांप-नेवला बताया जाता है तो कभी बिल्ली की संज्ञा दे दी जाती। इस बार पीडीपी की चीफ़ एवं जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती को खिसियानी बिल्ली बताया गया है। महबूबा को खिसियानी बिल्ली की संज्ञा ‘आजतक’ के शो ‘दंगल’ में दी गई है, जिसके होस्ट रोहित सरदाना हैं।

रोहित सरदाना ने 1 जुलाई के अपने शो दंगल का पोस्टर ट्विटर पर शेयर किया। जिसमें लिखा था, “खिसियानी महबूबा भगवा कोसे!” इस पोस्टर को शेयर करने के साथ ही सरदाना ने लिखा, “खेल ने नहीं, भगवा जरसी ने हराया? पाकिस्तान का मलाल, इसलिए महबूबा ‘भगवा जरसी’ पर लाल? खिसियानी महबूबा भगवा कोसे!”

दरअसल, महबूबा मुफ्ती ने भारत की इंग्लैंड के हाथों हुई हार के लिए भगवा जर्सी को ज़िम्मेदार ठहरा दिया था। उन्होंने ट्विटर पर कहा था कि उन्हें अंधविश्वासी कहो, लेकिन वह मानती हैं कि जर्सी की वजह से भारत का विजय रथ रुक गया है।

उनके इसी बयान को लेकर आजतक ने उन्हें खिसियानी बिल्ली बता डाला, जो कि बेहद अपमानजनक है। लेकिन सवाल यह उठता है कि आख़िर चैनल ने महबूबा को खिसयानी बिल्ली क्यों बताया? क्या महबूबा के सिवा सभी भारतीय भारत की हार पर ख़ुश थे, वह इस हार से गुस्साए और खिसयाए नहीं थे? ज़ाहिर है अपने देश की हार पर ग़ुस्सा करना और खिसयाना स्वभाविक है।

हार के बाद किसी न किसी चीज़ पर दोष मढ़े भी जाते हैं और भारत में खासतौर पर जहां अंधविश्वास पर लोगों का अटूट विश्वास है। वहां जर्सी के रंग के बदलने पर हार की बात कहना कोई हैरानी की बात नहीं है। लेकिन महबूबा मुफ्ती जो कि भारत के इतने अहम राज्य की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं, अगर वह अंधविश्वास की बात करती हैं तो इसपर सवाल उठना लाज़मी है।

लेकिन साथ ही सवाल उठाने वाले का निष्पक्ष होना भी ज़रूरी है। उस मीडिया संस्थान को महबूबा के अंधविश्वास पर सवाल उठाने का कोई हक़ नहीं जो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कर्मकांडों पर ख़ामोश रहता है।

हालांकि महबूबा मुफ्ती ने अपने ट्वीट में पहले ही साफ़ कर दिया है कि उन्हें अंधविश्वासी कहलाए जाने से कोई फर्क नहीं पड़ता। यानी उन्होंने जो बात कही है वह अंधविश्वास में नहीं बल्कि भगवा रंग पर कटाक्ष करने के लिए कही। अब सवाल ये है कि जब महबूबा मुफ्ती ने भगवा पर कटाक्ष किया तो चैनल को बुरा क्यों बुरा लगा? क्या चैनल के एजेंडे में भी भगवा शामिल है?

By: Asif Raza

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