पिछले 6 सालों में लिंचिंग जिस तरह से बढ़ी है मगर संघ प्रमुख मोहन भागवत इसपर अलग राय रखते है। भागवत का कहना है कि भारतीय परिप्रेक्ष्य में ‘लिंचिंग’ शब्द का इस्तेमाल करना गलत है। यह शब्द भारत को बदनाम करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। उनका कहना है कि ‘लिंचिंग’ शब्द की उत्पत्ति भारतीय लोकाचार से नहीं हुई।

दरअसल नागपुर में आरएसएस की विजयादशमी रैली को संबोधित करते हुए संघ प्रमुख मोहन भागवत ने देश के तमाम मुद्दों पर अपनी राय (और थोपी भी) रखी। जिसमें उन्होंने लिंचिंग को सीधे सीधे ख़ारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि इस तरह की घटनाओं से संघ का कोई लेना-देना नहीं है और इन्हें रोकना हर किसी की जिम्मेदारी है।

कानून-व्यवस्था की सीमा का उल्लंघन कर हिंसा की प्रवृत्ति समाज में परस्पर संबंधों को नष्ट कर अपना प्रताप दिखाती है। यह प्रवृत्ति हमारे देश की परंपरा नहीं है, न ही हमारे संविधान में यह है, कितना भी मतभेद हो, कानून और संविधान की मर्यादा में रहें।

अब इस बयान पर विपक्षी नेताओं ने भागवत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। भागवत के बयान पर कांग्रेस नेता आचार्य प्रमोद ने सोशल मीडिया पर लिखा- संघ प्रमुख मोहन जी “भागवत” ने कहा है कि भारत में “मॉब लिंचिंग” नहीं होती, तो फिर पहलू खान, अख़लाक़, तबरेज़ अंसारी और इंस्पेक्टर सुबोध सिंह ने आत्महत्या की थी क्या?

बता दें कि विजयदशमी के मौके पर यहां के रेशमीबाग मैदान में ‘शस्त्र पूजा’ के बाद स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए मोहन भागवत ने यह बात कही। उन्होंने कहा कि ‘लिंचिंग’ शब्द की उत्पत्ति भारतीय लोकाचार से नहीं हुई, ऐसे शब्द को भारतीयों पर ना थोपा जाए।

इस दौरान उन्होंने ये भी कहा कि राष्ट्र के वैभव और शांति के लिये काम कर रहे सभी भारतीय “हिंदू” हैं। संघ की अपने राष्ट्र की पहचान के बारे में साथ ही हम सबकी सामूहिक पहचान के बारे में और हमारे देश के स्वभाव की पहचान के बारे में स्पष्ट दृष्टि व घोषणा है। वह सुविचारित व अडिग है, कि भारत हिंदुस्तान, हिंदू राष्ट्र है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here