देश को एक पूर्व राष्ट्रपति और तीन पूर्व प्रधानमंत्रियों सहित कई बड़े राजनेता देने वाले इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने राजनीति की ‘पाठशाला’ कहे जाने वाले छात्रसंघ चुनाव पर रोक लगाने का फैसला किया है।

जानकारी के मुताबिक, विश्वविद्यालय कार्य परिषद ने छात्रसंघ की जगह छात्र परिषद के गठन को मंजूरी दी है। इसपर 24 जून को एकेडमिक काउंसिल की बैठक में सहमति बनी थी। वहीं छात्र परिषद के एलान से पूर्व पदाधिकारियों में नाराज़गी है। वह इसे विवि प्रशासन की नाकामी बता रहे हैं।

पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष विनोद चंद्र दुबे ने कहा कि इविवि प्रशासन ने अपनी नाकामियों को छिपाने के लिए छात्र परिषद लागू करने की साजिश रची है। यह लोकतंत्र की हत्या है। इविवि के छात्रसंघ ने ही कईयों को सियासत सिखाई। इस लिए इस कदम का पुरजोर विरोध किया जाएगा। इस लड़ाई में पूर्व पदाधिकारी शामिल होंगे।

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वहीं समाजवादी पार्टी की नेता एवं ईविवि की पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष रिचा सिंह ने भी विश्वविद्यालय के फैसले का विरोध किया। उन्होंने कहा, “विश्वविद्यालय के कुलपति गंभीर आरोपों की जांच का सामना कर रहे हैं। छात्र संघ इस मुद्दे पर काफी मुखर था और उनके कुकर्मों के खिलाफ आवाज उठाता रहा”।

उन्होंने कहा, “विश्वविद्यालय प्रशासन ने इस आवाज़ को दबाने लिए यह निर्णय लिया है। केवल उन छात्रों को विद्यार्थी परिषद में जगह मिलेगी जिन्हें विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा नियंत्रित किया जाता है”। उन्होंने कहा, “इस विश्वविद्यालय के छात्रसंघ ने देश को कई दूरदर्शी नेता प्रदान किए हैं, लेकिन अब प्रशासन छात्रों की आवाज़ को दबाने की कोशिश कर रहा है”।

बता दें कि एशिया में इलाहाबाद विश्वविद्यालय का छात्रसंघ एशिया का सबसे पुराना छात्र संगठन है।  राजनीतिक की पाठशाला कहे जाने वाले इलाहाबाद विश्वविद्यालय से कई बड़ी हस्तियां देश को मिली हैं। पूर्व राष्ट्रपति डॉ शंकर दयाल शर्मा, पूर्व पीएम वीपी सिंह, चन्द्रशेखर, गुलजारी लाल नंदा और पूर्व सीएम एनडी तिवारी ने राजनीति का पाठ यहीं से पढ़ा और फिर पूरे देश को पढ़ाया।

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