राजन राज

पिछले 2 महीनों से आप लगातार सीएए और एनआरसी की चर्चा में व्यस्त हैं। उधर संघ आपके उस नींव के पत्थर को तोड़ने में लगा है जिसके आधार पर आप अपने समाजिक न्याय की लड़ाई को आगे बढ़ाते आए हैं।

अगर आरक्षण के बारे में हालिया खबर आपने नहीं पढ़ी है तो आपको एक बार उस ओर भी अपनी नजर दौड़ाने की जरूरत है। आपका सामाजिक अस्तित्व खतरे में पड़ने वाला है और आप अब भी देश के गद्दारों को गोली मारो सा… का नारा लगा रहे है। अब नींद से जागिए औऱ पहले ये जानिए कि आखिर हुआ क्या है :

उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग में हुई एक बैठक में यह निर्णय लिया गया कि किसी भी परीक्षा, जिसमें प्रारंभिक परीक्षा, मुख्य परीक्षा, साक्षात्कार और स्क्रीनिंग परीक्षाएं शामिल हैं, वहां किसी भी स्तर पर अन्य पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं ईडब्ल्यूएस आरक्षण का लाभ लेने की स्थिति में संबंधित अभ्यर्थी को उसी की श्रेणी में चयनित किया जाएगा, भले ही अंतिम चयन परिणाम में उसका कटऑफ अनारक्षित वर्ग के बराबर या अधिक हो।

इस व्यवस्था में स्क्रीनिंग परीक्षा को भी शामिल किया गया है, ऐसे में आयोग का यह निर्णय सीधी भर्ती पर भी लागू होगा। पहले की व्यवस्था में अगर कोई अभ्यर्थी किसी भी स्तर पर आरक्षण का लाभ लेता था और अंतिम चयन परिणाम में उसका कटऑफ अनारक्षित वर्ग के कटऑफ अंक के बराबर या अधिक होता था, तो उसे ओवरलैप कराकर अनारक्षित वर्ग में चयनित कर लिया जाता था, जिसमें आयोग ने अब बदलाव किया है। अब सारा खेल यहीं है जिसे आपको अच्छ से समझने की जरूरत है।

इस देश में बहुजनों की जनसंख्या तकरीबन 85 प्रतिशत मानी जाती है। जिसमें से ओबीसी वर्ग को 27 प्रतिशत और एससी-एसटी को लगभग 23 प्रतिशत आरक्षण दिया जाता है। इसका साफ गणित यह है कि देश की 85 फीसदी जनता को मात्र लगभग 50 प्रतिशत आरक्षण दिया जा रहा है। लोक सेवा आयोग के नए नियमों के अनुसार अब आरक्षित वर्ग के लोगों का अनारक्षित सीटों पर कोई अधिकार नहीं है।

इसका साफ मतलब ये है कि देश की 85 प्रतिशत जनता(बहुजन) को मात्र 50 फीसदी सीटों के लिए चयनित किया जाएगा। वहीं देश की 15 फीसदी जनता (सवर्ण) 50 फीसदी सीटों की हकदार होगी। इतने में ही घबराने की जरूरत नहीं है। ये तो बस एक राज्य की बात है आगे का खेल और भी बड़ा है।

अगले खबर पर आते हैं। मोदी सरकार ने केंद्र कार्मिक और पेंशन विभाग के वर्तमान सचिव बीपी शर्मा की अध्यक्षता में एक कमेटी गठन किया था। इस कमेटी का काम था ओबीसी वर्ग में क्रीमी लेयर को दिए गए प्रावधानों में संशोधन करने की सिफारिश देना । इस कमेटी ने अपने रिपोर्ट में दो विकल्प सुझाए हैं. क. पहला विकल्प है कि वेतन और कृषि समेत अन्य आय को आमदनी में शामिल करके क्रीमी लेयर लागू किया जाए. ख. दूसरा विकल्प है कि पुरानी व्यवस्था कायम रखी जाए और क्रीमी लेयर की सीमा बढ़ा दी जाए।

कमेटी ने इस बात की भी अनुशंसा की है कि पहले विकल्प को लागू करना ज्यादा बेहतर होगा। इसके साथ ही कमिटी ने ये भी सुझाव दिया है कि क्रीमी लेयर की सीमा को 8 लाख रुपए सालाना से बढ़ाकर 12 लाख रुपए सालाना कर दिया जाए। मोदी सरकार अगर इस कमेटी की रिपोर्ट को लागू करने में सफल हो जाती है तो देश भर में लाखों ओबीसी वर्ग के लोगों को भारी नुकासान सहना पड़ेगा।

इंडिया टुडे के पूर्व संपादक और बहुजन चिंतक दिलीप मंडल के अनुसार इस कमेटी की रिपोर्ट सिफारिशों को अगर मान लिया जाता है तो “बड़ी संख्या में वेतनभोगी कर्मचारी, जो अभी क्रीमी लेयर में नहीं हैं, क्रीमी लेयर के दायरे में आ जाएंगे। वर्तमान में स्थिति यह है कि ज़्यादातर सरकारी सेवाओं में ओबीसी के पद खाली पड़े हैं। क्रीमी लेयर के नए प्रावधान के बाद ओबीसी कैंडिडेट की संख्या और कम हो जाएगी और ओबीसी रिज़र्वेशन काफी हद तक बेअसर हो जाएगा।

पदोन्नति में आरक्षण को लेकर विवाद एक बार फिर गहराया उत्तराखंड के हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के उस आदेश को निरस्त कर दिया था जिसमें उत्तराखंड सरकार ने पदोन्नति में आरक्षण के लिए एससी और एसटी के आंकड़े जमा करने का निर्देश दिया था।

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड़ हाईकोर्ट के इस आदेश को निरस्त कर दिया है। इस सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने नौकरिय़ों में आरक्षण को लेकर एक बार फिर से टिप्पणी करते हुए कहा है कि सरकारी नौकरियों में प्रमोशन में आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है और इसे लागू करना या न करना राज्य सरकारों के विवेक पर निर्भर करता है। इसके साथ ही जजों की बेंच ने यह भी कहा है कि इस देश की कोई भी अदालत एससी और एसटी वर्ग के लोगों को आरक्षण देने का आदेश जारी नहीं कर सकती।

सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी के बाद एक बार फिर से आरक्षण पर खतरा मंडराने लगा है। कोर्ट ने राज्य को अधिकार देकर य़े साफ कर दिया है कि आरक्षण जैसे मामलों को वो अपने तरीके से हैंडल करें। इस देश के ज्यादातर राज्यों में अभी उस विचारधारा के लोगों की सरकार है जो खुलेआम आरक्षण को निरस्त करने की बात करते हैं।

सालों से मंडल कमीशन का विरोध करने वाले लोगों को आर्थिक आधार पर आरक्षण लागू करने में 1 सप्ताह का भी समय नहीं लगता है। देश की बहुजन जनता के लिए यही सबसे सही समय़ है कि हिंदु-मुस्लिम के झगड़ों से ऊपर उठ कर अपनी समाजिक विरासत की लड़ाई लड़े।

धार्मिक भेदभाव या धार्मिक झगड़ा, जातिवादी सवर्णों के द्वारा रचित एक ऐसा जाल है जिसमें फंस कर इस देश के ज्यादातर बहुजन जनता अपनी समाजिक न्याय की लड़ाई को भूलते जा रहे हैं।

(राजन राज IIMC दिल्ली में हिंदी पत्रकारिता के छात्र हैं)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here