मोदी सरकार ने सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून में संशोधनों का प्रस्ताव दिया है। सरकार ने आरटीआई कानून में संशोधन करने के लिए लोकसभा में शुक्रवार को एक विधेयक पेश किया जिसमें सूचना आयुक्तों का वेतन, कार्यकाल और रोजगार की शर्तें एवं स्थितियां तय करने की शक्तियां सरकार को देने की बात कही गई है।
मगर जितनी ये बात छोटी बताई जा रही है क्या आरटीआई संशोधन होना उतनी छोटी चीज़ है? लोगों का आरोप है कि सरकार इस संशोधन के जरिए इस कानून को खोखला करना चाहती है।
वहीं इस मामले पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने मोदी सरकार पर निशाना साधा है। केजरीवाल ने कहा कि इससे केंद्रीय एवं राज्य के सूचना आयोगों की स्वतंत्रता समाप्त हो जाएगी। राजनीति में आने से पहले आरटीआई कानून को लागू करवाने में अहम भूमिका निभाने वाले केजरीवाल ने कहा कि आरटीआई कानून में संशोधन करना एक “खराब कदम” है।
उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा कि आरटीआई कानून में संशोधन का निर्णय एक खराब कदम है। यह केंद्रीय एवं राज्यों के सूचना आयोगों की स्वतंत्रता समाप्त कर देगा जो आरटीआई के लिए अच्छा नहीं होगा।
Decision to amend the RTI Act is a bad move. It will end the independence of Central & States Information Commissions, which will be bad for RTI
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) July 22, 2019
विरोध क्यों ?
इस बिल में कहा गया है कि केंद्र और राज्यों की सूचना आयुक्तों की सेवा का कार्यकाल, वेतन, भत्ते और जैसी शर्तें तय करने के लिए केंद्र सरकार को एकतरफा अधिकार देने के लिए आरटीआई कानून में संशोधन करने की मांग की गई है। अब सवाल ये है कि आरटीआई की मदद से मोदी सरकार की नाकामी हर बार सबके सामने आ जाती ऐसे में सरकार भी चाह रही है कि संशोधन के बहाने इस कानून पर लगाम लगा दी जाए।
बता दें कि बीते शुक्रवार को सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक पेश करते वक्त राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा था कि ये आरटीआई कानून को अधिक व्यावहारिक बनाएगा। उन्होंने कहा कि ये प्रशासनिक उद्देश्यों के लिए लाया गया कानून है।