मोदीराज में दिनोंदिन देश की अर्थव्यवस्था कमज़ोर हो रही है। इसका असर देश के सरकारी बैंकों पर भी देखने को मिल रहा है। एक RTI के जवाब में पता चला है कि 26 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की 3,400 से अधिक शाखाएं या तो बंद करदी गयी हैं या फिर उनका विलय कर दिया गया है।

आपको बता दें कि एक्टिविस्ट चंद्रशेखर गौड़ ने एक RTI डाली थी जिसके जवाब में RBI ने ये सब जानकारी दी है। जवाब में बताया गया है कि देश के 26 सरकारी बैंकों की दशा इतनी ‘दयनीय” है कि उनकी 3400 से ज़्यादा शाखाओं को बंद करना पड़ा है या फिर उनका विलय (मर्जर) करना पड़ा है। इसमें स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया को सबसे ज़्यादा प्रभावित पाया गया है। इस सरकारी बैंक की 75 प्रतिशत शाखाओं पर असर पड़ा है।

कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने ट्वीट किया, “RTI में हुआ खुलासा।
5 साल में ‘खत्म’ हो गईं सरकारी बैंकों की करीब 3500 शाखाएं!
2014-15: 90
2015-16: 126
2016-17: 253
2017-18: 2083
2018-19: 875
पिछले 6 सालों में कुछ नया खुला हो तो बतायें,
वरना खबरें बिकने और बन्द होने की ही आ रही हैं!”

दरअसल, वित्तीय वर्ष 2014-15 में 90 शाखाओं का विलय कर दिया गया या फिर उन्हें बंद कर दिया गया था। 2015-16 के बीच 126 शाखाओं को तो वहीँ 2017-18 के बीच 2,083 शाखाओं को भी यही झेलना पड़ा था। इस वित्तीय वर्ष में 875 शाखाओं को भी इससे गुज़ारना पड़ा है।

सरकार की दलील है कि शाखाओं का विलय करके बड़े बैंक बनाने से सरकारी ख़ज़ाने बढ़ेगा। हालाँकि, इस तरह से शाखाओं को बंद करने या उनका विलय करने से ग्राहक उनके साथ बैंकिंग करना बंद कर देते हैं। इसके साथ-साथ ये भी समझा जा सकता है कि ये 3400 से ज़्यादा शाखाएं मोदीराज में कमज़ोर हो गई थी इसलिए ऐसे कदम उठाए गए। विलय के बाद बैंकों का IFSC कोड भी बदल जाता है। ग्राहकों को इससे भी असर पड़ेगा। यकीनन इन सब जटिलताओं से बैंकों के साथ-साथ ग्राहकों पर भी असर पड़ेगा।

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