प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के खिलाफ कथित तौर पर ‘अमर्यादित’ टिप्पणी करने वाले पत्रकार प्रशांत कनौजिया के खिलाफ FIR दर्ज की गई है।
लखनऊ के आशियाना में शिकायत दर्ज करवाते हुए शशांक शेखर सिंह लिखते हैं कि ‘प्रशांत कनौजिया की (ट्विटर) प्रोफाइल चेक करने पर पता चला यह व्यक्ति संभ्रांत लोगों के खिलाफ लगातार अमर्यादित टिप्पणी कर रहा है।’
इसके साथ ही उन्होंने लिखा कि 25 मार्च 2020 को भी प्रशांत कनौजिया ने प्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर अभद्र टिप्पणी करते हुए उन्हें अनपढ़ बोला था।
चस्पा की गई शिकायत की कॉपी से पता चलता है कि शशांक जिस ट्वीट का जिक्र कर रहे हैं उसमें लॉकडाउन न मानने की वजह से योगी आदित्यनाथ पर टिप्पणी करते हुए यह लिखा गया है कि यह धारा 188 का उल्लंघन है।
यहां ये समझना थोड़ा मुश्किल है कि शिकायतकर्ता योगी आदित्यनाथ को अनपढ़ कहने से आहत हैं या फिर ‘यशस्वी’ न मानने की वजह से। क्योंकि शिकायतकर्ता भारतीय जनता पार्टी के नेता हैं, ये बात भी जगजाहिर है। शायद इसीलिए शिकायत में ‘गैरकानूनी’ से ज्यादा ‘अमर्यादित’ पर फोकस किया गया है।
उन्होंने शिकायत की कॉपी में प्रशांत कनौजिया पर चल रहे पुराने मामले का भी जिक्र किया है- जब योगी आदित्यनाथ पर टिप्पणी करने को लेकर जून 2019 में उन्हें हिरासत में लेकर जेल में डाला गया था।
उस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पत्रकार प्रशांत कनौजिया को हिदायत दी थी, साथ ही योगी आदित्यनाथ के प्रशासन को कड़ी फटकार लगाई थी-हालांकि शिकायत में इस बात का कहीं भी जिक्र नहीं किया गया है।
शिकायतकर्ता की कॉपी में कुछ अन्य ट्वीट भी चस्पा किए गए हैं जिनमें से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर की गई टिप्पणी और बीजेपी में ‘केशव मौर्य की दयनीय स्थिति’ पर टिप्पणी की गई है।
वैसे कनौजिया लगतार सोशल मीडिया पर दलितों-पिछड़ों का पक्ष रखते रहे हैं, इसके अलावा NRC/CAA/NPR के ख़िलाफ़ कई राज्यों में रैली भी करते नज़र आए थे। इस कारण से भी प्रशांत सरकार के निशाने पर रहे हैं।
हालांकि इस एफआईआर से पत्रकार प्रशांत कनौजिया की मुसीबतें बढ़ेगी या फिर योगी सरकार की, ये अंदाजा लगाना बेहद मुश्किल है। क्योंकि जून 2019 में भी कुछ इसी तरह के टिप्पणी का मामला था जब पत्रकार प्रशांत कनौजिया को सादी वर्दी धारियों ने दिल्ली से उठा लिया था- वो भी बिना कोई वारंट दिखाए।
इसके साथ ही शुरू हो गई पत्रकार की दुर्गति से ज्यादा योगी सरकार की फजीहत ।
प्रशासन की मनमानी हरकत के खिलाफ पहले सोशल मीडिया पर आक्रोश दिखा फिर मीडिया पर और उसके बाद तमाम विपक्षी नेताओं ने भी नाराजगी जाहिर की।
समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के साथ-साथ बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने भी योगी प्रशासन के इस दुस्साहस की आलोचना की थी। रही सही कसर पूरी कर दी सुप्रीम कोर्ट ने।
दरअसल सर्वोच्च न्यायालय से पत्रकार को ‘हिदायत’ मिली थी और योगी सरकार को जमकर ‘फटकार’ लगाई गई थी। इसके बाद बेबस योगी प्रशासन ने पत्रकार प्रशांत कनौजिया को लखनऊ जिला जेल से रिहा कर दिया था।