गुरुवार को तर्कवादी गोविंद पानसरे हत्याकांड पर सुनवाई के दौरान बॉम्बे हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को लताड़ा है। जस्टिस एससी धर्माधिकारी और जस्टिस बीपी कोलाबावाला की पीठ ने महाराष्ट्र के गृह विभाग के साथ ही सचिव को मामले मे धीमी जांच के कारण बताने के लिए 28 मार्च तक का समय दिया है।

पीठ ने कहा, ‘राज्य को दबाव महसूस करने दीजिए। उसे किसी न किसी दिन परिणाम भुगतने होंगे। ज्यादातर समय पुलिस बचती रही, कोई मेमो जारी नहीं किए गए, कोई स्पष्टीकरण नहीं मांगा गया।’

साल 2015 में तर्कवादी नेता गोविन्द पानसरे, नरेंद्र दाभोलकर और एम्.एम् कालबुर्गी की हत्या करदी गई थी। इस हत्याकांड को अंजाम देने का आरोप हिन्दू सगठन सनातन धर्म पर लगाया गया था। उस समय राज्य सभा में राज्य के गृह मंत्री किरण रिजिजू ने सनातन संस्था पर लगे आरोपों को नकारा और कहा था कि ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं जिसके आधार पर ये माना जाए की इन तीनो की हत्या के बीच कोई कड़ी है।

पीठ ने सीबीआई द्वारा गोविन्द पानसरे हत्याकांड की जांच करने के तरीके और पेश की गई प्रगति रिपोर्ट पर नाराज़गी जताई है। उन्होंने कहा कि, ‘देशभर में कहीं भी जाने और छिपने से उन्हें कौन रोकता है? केवल इसलिए कि किसी के पास एक संपत्ति है इसका मतलब यह नहीं है कि वह उसी क्षेत्र में घूमेगा। आरोपी देश में कहीं भी शरण ले सकता है।

उसे पकड़ने के लिए आप जो प्रारंभिक कदम उठा रहे हैं, उसने आपको हंसी का पात्र बना दिया है। अगर न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद अपराध की जांच की जाएगी, एक के बाद एक मामले में अगर न्यायपालिका ही एकमात्र रक्षक है तो ये दुखद स्थिति है। हम समाज को क्या संदेश दे रहे हैं।’

साथ ही कोर्ट ने राज्य सरकार को भी खरी- खोटी सुनाई। पीठ ने कहा कि राज्य मूकदर्शक बन नहीं रह सकता। ये कोई फिल्म नहीं है जहां पुलिस और जांच एजेंसियां सब कुछ खत्म हो जाने के बाद आएं। साथ ही सलाह दी कि अगर राजनेता ही अपने लोगों की रक्षा नहीं कर सकते तो इन्हे चुनाव नहीं लड़ना चाहिए। पीठ ने सीबीआई को निर्देश दिया कि वह बिना और देरी के अपनी जांच को ख़त्म करे।

सीबीआई ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि दाभोलकर मामले में हमलावरों को गिरफ्तार किया गया था, चिन्हित किया गया था और आरोप पत्र दायर किया गया था। पानसरे के केस में अभी कुछ और तथ्यों की जांच करने की आवश्यकता है और इसलिए उन्होंने कोर्ट से कुछ समय और माँगा है।

पानसरे को 16 फरवरी 2015 को कोल्हापुर में गोली मार दी गई थी। गोविन्द पानसरे मार्क्सवाद, ग्लोबलाइसेशन, जाति और अल्पसंख्यक अधिकारों पर कई किताबे लिखी थी और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया के सदस्य भी थे।

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