3 दिसम्बर को बुलंदशहर में गोकशी के नाम पर हुई हिंसा के बाद स्याना थाने के इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की भीड़ द्वारा हत्या कर दी गई थी। जिसका मुख्य आरोपी है बजरंग दल का नेता योगेश राज।

इस घटना के तुरंत बाद सीएम योगी आदित्यनाथ ने आला अधिकारियों के साथ बैठक कर गोकशी के मामले में सख़्ती के साथ निपटने के लिए गाइडलाइन जारी की थी।

आपको जानकर हैरानी होगी कि इस गाइड लाइन में सीएम योगी ने मारे गए इंस्पेक्टर सुबोध कुमार का ज़िक्र तक नहीं किया था।… यहीं से साफ़ हो गया था कि बुलंदशहर मामले पर योगी सरकार का रवैया क्या रहने वाला है।

हुआ भी यही… घटना को 44 दिन बीत चुके हैं। लेकिन पुलिस का ध्यान अब भी इंस्पेक्टर सुबोध की हत्या से ज़्यादा गोकशी पर है।… पुलिस ने गोकशी मामले के 3 आरोपियों पर रासुका लगा दी है। तीनों ने अदालत में ज़मानत की अर्ज़ी दी थी और पूरी उम्मीद थी कि तीनों को ज़मानत मिल जाएगी। इसको भाँपते हुए पुलिस ने हाजी महबूब, नदीम चौधरी और अज़हर अली पर राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून लगा दिया है। अब फ़िलहाल ये जेल में ही रहेंगे

पुलिस द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि, अगर पुलिस उन्हें छोड़ देती तो वो गोकशी की और घटनाओं को अंजाम दे सकते थे। या सबूतों के साथ छेड़-छाड़ कर सकते थे।

गोकशी के मामले में पुलिस ने पहले भी कुछ लोगों को पकड़ा था पर बाद में वो बेगुनाह निकलें।

रासुका की कार्रवाई पर सवाल उठाते हुए बुलंदशहर के सपा नेता मजीद अली कहते हैं कि, प्रशासन ने यह काम हिंदुत्ववादी संगठनों को ख़ुश करने के लिए किया है। इंस्पेक्टर सुबोध की हत्या के आरोपी को हीरो की तरह पेश किया जा रहा है। बुलंदशहर में उसके होर्डिंग्स लगाए गए हैं। पुलिस की एकतरफ़ा कार्रवाई सही नहीं है।

जैसा कि हमने बताया कि पुलिस इस मामले में पहले से ही गोकशी को लेकर ज़्यादा संवेदनशील थी बनिस्बत सुबोध कुमार की हत्या के। अगर वो सुबोध कुमार की हत्या को लेकर भी संवेदनशील होती तो हिंसा के कई आरोपी अब भी पुलिस की गिरफ़्त से बाहर नहीं होते। और तो और इस मामले में योगेश राज समेत जितनी भी गिरफ़्तारियाँ हुई हैं उनमें से योगेश समेत कइयों ने ख़ुद सरेंडर किया है ना कि पुलिस ने उन्हें गिरफ़्तार किया है।

बुलंदशहर हिंसा मामले में अब तक 36 लोगों की गिरफ़्तारी हुई है।

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