मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में कोरोना वैक्सीन के ट्रायल को लेकर बड़ी लापरवाही बरते जाने का मामले सामने आया है। बताया जा रहा है कि यहां गैसकांड के पीड़ितों को बिना बताए ही उन्हें वैक्सीन के ट्रायल की प्रक्रिया में शामिल किया गया।

न्यूज़ चैनल एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, गैसकांड के पीड़ितों ने आरोप लगाया है कि उन्हें वैक्सीन के संभावित साइड इफेक्ट्स की जानकारी दिए बिना ही टीका लगाया गया।

उन्हें सिर्फ़ इतना बताया कि ये टीके मुफ़्त में लगाए जा रहे हैं। उन्हें इस बात की जानकारी भी नहीं थी कि वह वैक्सीन के ट्रायल का हिस्सा हैं।

शंकर नगर और ओड़िया नगर इलाके में रहने वाले गैसकांड पीड़ितों ने चैनल को बताया कि वो नहीं जानते थे कि उन्हें कोरोना वैक्सीन के ट्रायल की प्रक्रिया का हिस्सा बनाया जा रहा है। वैक्सीन की खुराक देने के समय उन्हें सिर्फ इतना बताया गया था कि ये इंजेक्शन उन्हें कोरोना से संक्रमित होने से बचाएगा।

गैस पीड़ित लोगों का कहना है कि उन्हें वैक्सीन की खुराक देने से पहले ज़रूरी इन्फॉर्म्ड कंसेंट यानी सहमति सूची की प्रतियां नहीं दी गईं।

शंकर नगर में रहने वाली रेखा ने न्यूज़ चैनल से कहा कि किसी ने हमें यह नहीं बताया कि हम आपको वैक्सीन दे रहे हैं। हमें नहीं पता था कि हमारे ऊपर वैक्सीन का परीक्षण हो रहा है। हमें बस इतना कहा गया कि अगर कोई दिक्कत आती है तो अस्पताल को फोन कर सूचित कर दें।

रिपोर्ट के मुताबिक कुछ लोग तो सिर्फ इसलिए वैक्सीन लगवाने को तैयार हो गए, क्योंकि उन्हें बताया गया कि यह टीका अभी मुफ्त में मिल रहा है। कुछ लोगों ने ये आरोप भी लगाए कि उन्हें टीका लगवाने पर 750 रुपए देने का वादा किया गया था।

ट्रायल में शामिल किए गए एक शख्स ने आरोप लगाया है कि टीका लगवाने के बाद से उसकी तबीयत बिगड़ गई है। जितेंद्र नरवरिया नाम के दिहाड़ी मज़दूर ने चैनल को बताया कि 10 दिसंबर को उसे टीका लगाया गया था।

जिसके कुछ दिनों बाद ही उसकी तबीयत बिगड़ गई और वो अभी तक अस्वस्थ है। वो तभी से अस्पताल के चक्कर काट रहा है। लेकिन पैसों की कमी के चलते उसे इलाज नहीं मिल रहा।

सामाजिक कार्यकर्ता रचना ढींगरा ने कहा कि वैक्सीन के ट्रायल के नाम पर लोगों को भेड़ बकरियों की तरह हांक दिया गया। ज़्यादातर प्रतिभागियों को तो इस बात की ख़बर तक नहीं है कि वे इस परीक्षण का हिसा भी हैं।

ढींगरा ने कहा कि इस तरह की घटनाएं टीके के प्रभाव को लेकर भी गंभीर सवाल खड़ा करती हैं। उन्हें पहले टीका दिया जा रहा है और जब प्रतिकूल प्रतिक्रिया आ रही है तो लोगों को उसका खर्चा भी अपनी जेब से भरना पड़ा रहा है।

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