लोकसभा चुनाव ख़त्म हुए करीब दो महीने से ऊपर का वक़्त बीत चुका है। मगर अभी तक ईवीएम की गड़बड़ी का मामला ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है। अब चुनाव आयोग ने EVM गड़बड़ी को लेकर खुद जो आंकड़े पेश किए है। उससे एक बार फिर ईवीएम सवालों के घेरे में हैं।

दरअसल चुनाव आयोग के अनुसार, बीते लोकसभा चुनाव सिर्फ 8 इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) और वोटर वेरिफियेबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) के नतीजों में अंतर पाया गया है। आयोग ने 0.0004% वोटों अंतर पाया है।

आयोग ने 8 ईवीएम में पड़े वोट और वीवीपीएटी मशीनों की पर्चियों की गिनती में अंतर पाया है, वह देश के उन 20,687 पोलिंग स्टेशन्स के हैं, जहां सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के मुताबिक वोटों का फिजिकल वेरिफिकेशन कराने ज़रूरी थी। चुनाव आयोग ने इस अंतर को पहली वजह जो समझ में आ रही है वो है मानवीय भूल।

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मतलब ये की वोटों और पर्चियों के मिलान में जो अंतर सामने आया है, वो मानवीय भूल है। मसलन पोलिंग स्टाफ का वोटिंग शुरू होने पहले पोलिंग एजेंट्स के लिए करवाए जाने वाले मॉक पोल की पर्चियां वीवीपीएटी से हटाना भूल गए। जिन 8 ईवीएम मशीन की गिनती में अंतर पाया गया उनमें राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में शामिल है।

आयोग के अनुसार, 8 मशीनों में आए इस अंतर को मतों की संख्या के आधार पर देखें तो देशभर में सिर्फ 51 वोट ऐसे पड़े हैं, जिनका मिलान वीवीपीएटी की पर्ची से नहीं हो पाया है। भले ही आयोग इसे एक छोटी मानवीय भूल बता रहा हो। मगर ये कोई छोटा मामला नहीं है अभी तक तो चुनाव आयोग ईवीएम गड़बड़ी और पर्चियों के मिलान को लेकर कई दावे कर रहा था।

आखिर ये दावे खोखले निकले अंतर भले 0.0004% का हो। मगर इस खुलासे के बाद ये बात तो साबित होती है कि ईवीएम और वोट और वीवीपीएटी मशीनों की पर्चियों की गिनती में फर्क हो जाता है।

एक वोट की हेराफेरी चुनाव आयोग को कटघरे में खड़ा करती है, इस मामले की जांच अगर सुप्रीम कोर्ट करवाए तो कई और खुलासे हो सकते है।

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