फोटो साभार-ANI

जम्मू-कश्मीर के दौरे पर आए यूरोपीय संघ के सांसद निकोलस फेस्ट ने मोदी सरकार के उस फैसले का विरोध किया है, जिसके तहत भारत के विपक्षी सांसदों को घाटी जाने पर रोक लगाई गई है।

निकोलस फेस्ट ने कहा कि मुझे लगता है कि अगर आप यूरोपीय संघ के सांसदों को जाने देते हैं, तो आपको भारत के विपक्षी राजनेताओं को भी जाने देना चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार की नीति संतुलित नहीं है। भारत सरकार को किसी तरह से इसका समाधान करना चाहिए।

निकोलस के इस बयान के बाद कांग्रेस ने मोदी सरकार पर ज़ोरदार हमला बोला है। कांग्रेस नेता शमा मोहम्मद ने ट्विटर के ज़रिए कहा, “सावधानीपूर्वक चुने गए यूरोपीय संघ के सांसदों ने भी, जिन्हें संदिग्ध ‘बिजनेस ब्रोकर’ माडी शर्मा के ज़रिए पीआर के लिए बीजेपी सरकार कश्मीर लाई, मांग कर रहे हैं कि विपक्षी नेताओं को कश्मीर का दौरा करने की अनुमति दी जाए। मोदी सरकार पर दांव उलटा पड़ गया”। 

बता दें कि यूरोपीय संघ के 27 सांसदों का एक प्रतिनिधिमंडल दो दिवसीय दौरे पर मंगलवार को श्रीनगर पहुंचा था। दौरे का मकसद धारा 370 की समाप्ति के बाद घाटी की स्थिति का जायज़ा लेना बताया गया। लेकिन बाद में इस मामले में बड़ा खुलासा सामने आया।

बताया जा रहा है कि इन सांसदों को कश्मीर दौरे के लिए एक एनजीओ ने न्योता भेजा था। माडी शर्मा नाम की महिला ने सांसदों को पीएम से मिलवाने का प्रस्ताव दिया था। माडी शर्मा वूमंस इकोनॉमिक एंड सोशल थिंक टैंक नाम के एनजीओ की प्रमुख हैं।

शर्मा बेल्जियम की राजधानी ब्रसेल्स में रहनेवाली भारतीय मूल की ब्रिटिश नागरिक हैं। माडी शर्मा के ट्विटर हैंडल पर दी जानकारी में ये खुद को ‘सोशल कैपिटलिस्ट: इंटरनेशनल बिजनस ब्रोकर, एजुकेशनल आंत्रप्रेन्योर ऐंड स्पीकर’ बताती हैं।

ऐसा कहा जै रहा है कि माडी शर्मा ने ही यूरोपियन यूनियन के 30 सांसदों को चिट्ठी लिखकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से मिलवाने और कश्मीर ले जाने का न्योता दिया था। एक इंटरनेशनल बिजनस ब्रोकर द्वारा यूरोपीय संघ के सांसदों को कश्मीर बुलाए जाने के ख़ुलासे के बाद इसपर काफी सवाल उठ रहे हैं।

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