तान्या यादव

देश के एकमात्र केंद्रीय आदिवासी विश्वविद्यालय में आदिवासियों की भागीदारी को ही रोकने की तमाम कोशिश की जा रही है। इसके लिए प्रवेश परीक्षा में ही आदिवासियों के पहुंचने को लेकर बाधाएं डाली जा रही हैं।

मामला इंदिरा गांधी नेशनल ट्राइबल यूनिवर्सिटी का है जिसके इस वर्ष की प्रवेश परीक्षा के लिए दक्षिण भारत में एकमात्र परीक्षा केंद्र बनाया गया है। तमाम आदिवासी बहुल क्षेत्रों में एक भी परीक्षा केंद्र की व्यवस्था नहीं की गई है।

गौरतलब है कि देश भर में 28 परीक्षा केंद्रों की व्यवस्था की गई है और समूचे दक्षिण भारत में सिर्फ एक परीक्षा केंद्र की।

इसमें ध्यान देने की बात है कि पिछले साल इसमें सबसे ज्यादा आवेदन केरल के वायनाड से आए थे, ये वही जगह है जहां से राहुल गांधी लोकसभा सांसद हैं।

भले ही दक्षिण भारत में तमाम ऐसी जगह हैं जहां आदिवासी समाज लाखों की संख्या में है। मगर अकादमिक जगत से जुड़े फैसले लेने वाले तमाम जिम्मेदारानों को ये लगता है कि वहां प्रवेश परीक्षा के लिए केंद्रों की जरूरत नहीं है।

जिनके घरों से परीक्षा केंद्र की दूरी सैकड़ों किलोमीटर है वो प्रवेश परीक्षा में नहीं शामिल हो सकेंगे क्योंकि आदिवासी समाज में अधिकतर लोगों की आर्थिक स्थिति बेहद खराब होती है, ये बात जगजाहिर है।

इसी मामले पर द हिंदू की खबर के मुताबिक, तमाम नेताओं ने इसकी जमकर आलोचना की है।

वायनाड से सांसद राहुल गांधी का कहना है कि इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा आदिवासी रहते हैं। परीक्षा केंद्रों को दूर करने के कारण इन छात्र छात्राओं को कंपीट करने का मौका नहीं मिलेगा।

इस मामले पर आदिवासी छात्र संगठन, राज्यसभा सांसद ई करीम और सीपीआई नेता विनोद विश्वम ने केंद्रीय मंत्री रमेश पोखरियाल को पत्र भी लिखा है।

ऐसा लगता है अब तमाम विश्वविद्यालय फिर उन्हीं पुरातन विचारों पर चल रहे हैं जहां शिक्षा ग्रहण करने वाले किसी एकलव्य का अंगूठा ले लिया जाता है, जहां शिक्षा की चाहत रखने वाले तमाम आदिवासियों को वंचित कर दिया जाता है। जहां क्षेत्र विशेष और नस्ल विशेष के लोगों से भेदभाव किया जाता है। जबकि इन विश्वविद्यालयों को भारतीय संविधान के हिसाब से चलना चाहिए और दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों की भागीदारी बढ़ाने के लिए तमाम उपाय करने चाहिए।

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