जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं ने आज 11 नवंबर को आयोजित हो रहे JNU के दीक्षांत समारोह के दौरान जमकर विरोध प्रदर्शन किया। मुख्य अतिथि के रूप में आए हुए वेंकैया नायडू को ये संदेश देने की कोशिश करते रहे कि मोदी सरकार में महंगी की जा रही शिक्षा जेएनयू छात्रों को मंजूर नहीं है। जेएनयू में 40% छात्र बेहद गरीब परिवारों से आते हैं वो इतनी महंगी फीस कहां से भर पाएंगे।
दरअसल कुछ दिन पहले जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रशासन ने फीस बढ़ोतरी समेत तमाम ऐसे फैसले लिए जिससे छात्र विरोधी कहा जा सकता है। हॉस्टल की फीस बढ़ोतरी का मामला हो या ड्रेस कोड का या फिर हॉस्टल में आने जाने का वक्त निर्धारित करने का; छात्र-छात्राएं हर चीज से नाराज हैं। प्रशासन से उनकी नाराजगी का आलम यह है कि पिछले कुछ दिनों से लगातार यूनिवर्सिटी स्ट्राइक की जा रही है। हड़ताल में शामिल हजारों हजार छात्र इस बात के गवाह हैं कि प्रशासनिक दमन के खिलाफ उनकी एकजुटता है।
प्रदर्शनकारी छात्र-छात्राएं आरोप लगा रहे हैं की मोदी सरकार शिक्षा को महंगी करके दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों समेत अन्य आर्थिक कमजोर वर्गों के छात्र छात्राओं को शिक्षा से वंचित कर देना चाह रही है। इसलिए इसे सामाजिक न्याय विरोधी साजिश के रूप में भी देखा जाना चाहिए। इसके साथ ही तमाम पाबंदियां लगाकर छात्राओं को आगे बढ़ने से रोकने की कोशिश की जा रही है। इससे बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ के जुमले की पोल खुलती है और महिला विरोधी सरकार को बेनकाब होती है।
हालांकि यह भी दिलचस्प है कि जेएनयू प्रशासन इतना बड़ा प्रोग्राम आयोजित करता है, वाइस प्रेसिडेंट को बुलाता है लेकिन किसी भी बातचीत के जरिए JNU के हजारों छात्रों को प्रोग्राम में शामिल करने की इच्छा नहीं दिखाता है। अगर प्रशासन का फैसला और पक्ष इतना ही सही है तो वाइस प्रेसिडेंट के समक्ष छात्रों को अपनी बात रखने का मौका देना चाहिए था।