अफगानिस्तान के सुरक्षा बलों के कार्य को ग्राउंड जीरो से कवर कर रहे भारतीय पत्रकार दानिश सिद्दीकी की तालिबान और सुरक्षा बल की हिंसा के दौरान मौत हो गई।

पुलित्जर पुरस्कार से सम्मानित दानिश सिद्दीकी रॉयटर्स के लिए काम करते थे। उनकी मौत के बाद से दुनिया भर से लोगों ने शोक जाहिर करते हुए प्रेस और ट्विटर के माध्यम से श्रद्धांजलि दी है।

लेकिन भारत के प्रधानमंत्री ने अब तक दानिश की मौत के लिए कुछ भी नहीं कहा है।

संयुक्त राष्ट्र ने तालिबान के खिलाफ अफ़गानिस्तान के सुरक्षा बलों के कार्य को कवर करते हुए मरने वाले पत्रकार दानिश सिद्दिकी के लिए शोक जताया है।

दानिश सिद्दीकी रॉयटर्स के लिए भारत के तमाम मुद्दों को अपनी तस्वीरों के जरिए कवर करते थे।

संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस के उप प्रवक्ता फरहान हक ने कहा है कि संयुक्त राष्ट्र को तालिबान के खिलाफ अफगानिस्तान सुरक्षा बलों के अभियान को कवर करने के दौरान मारे गए रॉयटर्स के फोटोग्राफर दानिश सिद्दीकी की मौत पर दुख है।

फरहान हक ने दुनिया भर के पत्रकारों पर होने वाले हमले और उनकी मौतों पर ध्यान केंद्रित करते हुए यहां तक कहा कि, गुटेरेस दुनिया में कहीं भी पत्रकारों की हत्याओं से दुखित हैं, दानिश की हत्या भी एक ऐसा ही मामला है। सिद्दीकी की मौत उन्हीं समस्याओं का उदाहरण भी है जिनका सामना अफ्गानिस्तान जैसे देश अभी भी कर रहे हैं।

2018 में पुलित्जर पुरस्कार से सम्मानित पत्रकार दानिश की मौत पर अमेरिका में जो बाइडन प्रशासन और सांसदों ने भी शोक जताया है।

पाकिस्तान के साथ सीमा के पास स्पिन बोल्डक शहर में शुक्रवार को वह मारे गए। उस दौरान वह अफगान विशेष बलों के साथ जुड़े हुए थे।

अमेरिका के विदेश विभाग की प्रवक्ता जलिना पोर्टर ने कहा कि हमें यह सुनकर गहरा दुख है कि रॉयटर्स के फोटो पत्रकार दानिश सिद्दीकी अफगानिस्तान में लड़ाई को कवर करते हुए मारे गए।

उन्होंने आगे कहा कि सिद्दीकी ने अक्सर दुनिया के सबसे विवादास्पद और चुनौतीपूर्ण खबरों को कवर करने का जोखिम उठाया। वह ध्यान आकर्षित करने वाली तस्वीरें लेते थे जो भावनाओं से भरी होतीं थीं और सुर्खियां बनाने वाले मानवीय चेहरे को व्यक्त करते थे। रोहिंग्या शरणार्थी संकट पर उनकी शानदार रिपोर्टिंग से उन्हें 2018 में पुलित्जर पुरस्कार मिला था।

अमेरिकी प्रवक्ता ने दानिश की हत्या को केवल रॉयटर्स ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक बड़ी क्षति साबित होगी। वहीं अफगानिस्तान में चल रही हिंसा के लिए भी जलिना पोर्टर ने कहा है कि अफगानिस्तान में अब तक कई पत्रकार मारे जा चुके हैं।

हिंसा को समाप्त करने के लिए किसी न्यायसंगत और टिकाऊ शांति की ओर बढ़ना चाहिए। हम अफगानिस्तान में हिंसा खत्म करने का आह्वान करते हैं।

वहीं वाशिंगटन डीसी में सीपीजे के एशिया प्रोग्राम के कन्वीनर स्टीवन बटलर का मानना है कि भले ही अमेरिका और उसके सहयोगी अपनी सेनाएं वापस बुला लें लेकिन पत्रकारों का काम फिर भी जारी रहेगा।

पत्रकारों के लिए खतरा बना रहेगा। अफगानिस्तान में अब तक दर्जनों पत्रकारों की मौत हो चुकी है। इन मौतों के लिए ना के बराबर जिम्मेदारी ली जाती है।

वहीं प्रधानमंत्री की ख़ामोशी पर पत्रकार अजीत अंजुम ने लिखा- “अगर वो दिनेश होता तो मोदी से लेकर नड्डा और शाह तक श्रद्धांजलि दे रहे होते। बाकी ट्रोल्स और नफरत के पुतलों का क्या कहना। ज़हर जिनके भीतर है, वो ऐसी मौतों पर भी निकलता है”

 

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