मेघालय हाईकोर्ट ने डोमिसाइल सर्टिफ़िकेट न मिलने से परेशान एक शख़्स की याचिका पर फ़ैसला देते हुए कहा है कि, “बंटवारे के समय ही भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित कर देना चाहिए था, लेकिन ये धर्मनिर्पेक्ष राष्ट्र बना रहा”

मेघालय हाईकोर्ट के जज एसआर सेन ने अमन राणा नाम के शख़्स की ओर से दायर याचिका का निपटारा करते हुए 37 पृष्ठ का फ़ैसला दिया है। जिसकी प्रति मंगलवार को उपलब्ध हुई।

फ़ैसले में कहा गया है कि, पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान इन तीनों देशों में आज में आज भी हिंदू, जैन, बौद्ध, ईसाई, पारसी, खासी, जयंतिया और गारो लोग प्रताड़ित हो रहे हैं, और यहाँ इनके लिए कोई जगह नहीं हैं। इन लोगों को किसी भी समय भारत आने दिया जाए। सरकार इनका पुनर्वास कर सकती है और नागरिक घोषित कर सकती है।

मेघालय उच्च न्यायालय ने प्रधानमंत्री, क़ानून मंत्री, गृहमंत्री और संसद से ऐसा क़ानून लाने का आग्रह किया है जिससे कि, बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आने वाले हिंदू, जैन, बौद्ध, ईसाई, पारसी, खासी, जयंतिया और गारो समुदाय को बग़ैर किसी दस्तावेज़ या सवाल के भारत की नागरिकता मिल सके।

हालांकि कोर्ट ने फ़ैसले में 2016 के संशोधित नागरिकता क़ानून का ज़िक्र नहीं किया जिसमें इन तीनों देशों से आए हिंदू, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध को 6 साल देश में रहने के बाद भारतीय नागरिकता का हक़दार बताया गया है।

कोर्ट के फ़ैसले में लिखा गया है कि, “यह एक अविवादित तथ्य है कि, बंटवारे के समय लाखों की तादाद में हिंदू और सिख मारे गएं, महिलाओं का यौन शोषण हुआ और हिंदुओं और सिखों को प्रताड़ित किया गया। उन्हें अपने पूर्वजों की संपत्ति छोड़कर आना पड़ा।

“ये सही बात है कि बंटवारे के समय बहुत बड़ी तादाद में क़त्ल-ए-आम हुआ और मरने वालों में सभी शामिल थे न कि सिर्फ़ हिंदू और सिख। लेकिन कोर्ट ने बाक़ी मारे गए लोगों के धर्मों का ज़िक्र क्यों नहीं किया ये माननीय न्यायालय ही जाने।

हाईकोर्ट के जज एसआर सेन ने पीएम मोदी में यक़ीन जताते हुए कहा है कि, उन्हें विश्वास है कि वो (पीएम मोदी) भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनने नहीं देंगे।

जब इस वक़्त देश में हर जगह दक्षिणपंथी हिंदुत्ववादी संगठनों का बोलबाला है, जो आए दिन अल्पसंख्यकों पर हो रही हिंसा में शामिल होते हैं। तो ऐसे में जज साहब को ऐसा क्यों लगता है कि देश इस्लामिक राष्ट्र की ओर जा रहा है, ये भी जज साहब ही जानें।

जज साहब ने मेघालय हाईकोर्ट में केंद्र की सहायक सॉलिसीटर जनरल ए. पॉल को मंगलवार तक फ़ैसले की प्रति प्रधानमंत्री, केंद्रीय गृह और विधि मंत्री को अवलोकन के लिए सौंपने और इन समुदायों के हितों की रक्षा के लिए क़ानून लाने को लेकर ज़रूरी क़दम उठाने को कहा है।

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