देश में कोरोना वायरस के मद्देनज़र लगाई गईं आर्थिक और सामाजिक पाबंदियां धीरे-धीरे खत्म हो रही हैं, लेकिन इसके बावजूद अर्थव्यवस्था में तेज़ी नहीं दिखाई दे रही। भारत आर्थिक मोर्चे पर लगातार पिछड़ता नज़र आ रहा है। साल की पहली छमाही में भारत की जीडीपी में सबसे ज्यादा गिरावट की आशंका जताई जा रही है।
भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास का कहना है कि वित्त वर्ष 2020-21 में देश की जीडीपी निगेटिव रहेगी। उन्होंने कहा कि सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए वर्ष की पहली छमाही में जीडीपी वृद्धि कम रहने का अनुमान है। दास ने ये बातें गुरुवार को मौद्रिक नीति समिति की बैठक के बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहीं।
उन्होंने कहा कि मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के मुताबिक भारत में भी आर्थिक गतिविधियों में सुधार होना शुरू हो गया था लेकिन फिर से कोरोना मामलों की बढ़ती संख्या ने लॉकडाउन करने पर मजबूर कर दिया है। इसके चलते अर्थव्यवस्था में रिकवरी की उम्मीदों को झटका लगा है।
आरबीआई गवर्नर ने इस दौरान महंगाई दर बढ़ने की आशंका भी जताई। उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी की वजह से इस साल की पहली छमाही में महंगाई दर में वृद्धि हो सकती है। हालांकि, दूसरी छमाही में इसमें कमी आने की उम्मीद है।
इसके साथ ही दास ने ये भी बताया कि कोरोना महामारी को देखते हुए आरबीआई ने यथास्थिति का विकल्प चुना है और ब्याज दरों में कोई परिवर्तन नहीं किया है। लेकिन, महामारी की वजह से प्रभावित अर्थव्यवस्था को देखते हुए आरबीआई ने भविष्य में और अधिक दरों में कटौती के संकेत दिए हैं।
आर्थिक जगत की इस खबर पर प्रतिक्रिया देते हुए चुनाव रणनीतिकार संजय यादव लिखते हैं- RBI ने कहा है कि 2020-21 में भारत की GDP नकारात्मक रहेगी यानि 25 सालों में पहली बार भारत का पूरा एक वर्ष नकारात्मक अर्थात् शून्य से नीचे की विकास दर के साथ गुजरेगा।
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नोटबंदी के बाद से ही रेंग रही भारतीय अर्थव्यवस्था के इस महत्वपूर्ण दौर में शून्य ग्रोथ का मतलब है महामारी के बीच अब बेरोज़गारी, बेकारी और गरीबी बहुत अधिक बढ़ेगी।
चूँकि न्यू इंडिया में सदियों से विलंबित कार्य हो रहे है तो आशा करिए कि अब बेरोज़गारी, ग़रीबी, महँगाई भी छूमंतर हो जाएगी।