मौहम्मद अली
चीन से होते हुए कोरोना वायरस ने भारत में भी दस्तक दे दी है। जिसके बाद से यहाँ सभी की जुबान पर बस कोरोना का ही नाम है। खासकर उन लोगों पर जो वर्तमान में सत्ता का सुख भोग रहे है। भारत में फ़िलहाल कोरोना के साथ-साथ अर्थव्यवस्था पर भी संकट मंडरा रहा है। भारी बारिश और ओलावृष्टि के कारण फसल बर्बाद हो चुकी है। लेकिन हमारी सरकार और प्रधानमंत्री सबकुछ भूलकर सिर्फ कोरोना का रोना रो रहे है।
वैसे कोरोना पर सरकार का सक्रिय होना लाजिमी है। लेकिन मूल मुददों से मुँह फेर लेना गलत है। कोरोना को लेकर सरकार कितनी सक्रिय है इस पर आगे बात करेंगे पहले देश की वर्तमान स्थिति देख लेते है। देशभर में आर्थिक संकट लगातार गहराता जा रहा है शेयर बाजार के धड़ाम होने से लाखों लोगों को नुकसान हुआ है। जीडीपी 11 साल के सबसे बुरे दौर से गुज़र रही है। अमेरिकी क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज ने 2020 के लिए भारत की जीडीपी ग्रोथ के अनुमान में बड़ी कटौती करते हुए इसको 6.6 फीसदी से घटाकर 5.4 फीसदी कर दिया है।
2021 के अनुमान को भी मूडीज ने 6.7 से घटाकर 5.8 फीसदी कर दिया है। जिससे साफ़ पता चलता है अगर अर्थव्यवस्था पर ध्यान नही दिया गया तो 2021 तक भी अर्थव्यवस्था पटरी पर नही आ सकती है। यस बैंक संकट के कारण आम लोगों का करोड़ो रूपया दाव पर लगा हुआ है। भारी बारिश और ओलावृष्टि के कारण इस बार की फसल पूरी तरह से बर्बाद हो चुकी है। जिस कारण एक बड़ा खाद्यान संकट देश पर पड़ने वाला है। यूपी में फसल की बर्बादी देखकर किसानों ने आत्महत्या करनी शुरू कर दी है। लाखों किसान देश के मुखिया की तरफ टकटकी लगाएं देख रहे है कि कब यह हमको याद करेंगे और सबका विकास करेगें।
जीएसटी काउंसिल को बैठक में वित्तमंत्री ने भी कोरोना की आड़ में गरीबों पर मंहगाई की मार बढ़ानी शुरू कर दी है। पेट्रोल-डीजल एक झटके में तीन रूपया महंगा कर दिया है। मोबाइल फोन पर जीएसटी 12% से बढ़ाकर 18% कर दी है। वहीं अपने उद्योगपति मित्रों पर रहम करते हुए विमान के ईधन तथा रख-रखाव पर जीएसटी घटाकर 18% से 5% कर दी है। मतलब साफ है कोरोना की आड़ में सरकार देश के मूल मुददों से ध्यान भटका रही है।
गौमूत्र कोरोना के बचाव के नाम पर भी हमें सिर्फ बेवकूफ़ बनाया जा रहा है। प्रधानमंत्री ने कोरोना का रोना रोते हुए खुद तो हाथ मिलाना छोड़ दिया लेकिन जनता को इस बार भी सिर्फ नारों से शांत किया जा रहा है। देशभर में कोरोना को महामारी तो घोषित कर दिया है। लेकिन अभी तक एक भी अस्पताल कोरोना के मरीजों के लिए नहीं बना है। और जो बने है वह सिर्फ ऊंट के मुँह में जीरे का काम कर रहे है। कोरोना की दस्तक के बारे में सरकार को सबकुछ पता था लेकिन सब सोते रहे और तीन देशवासियों ने अपनी जान गवां दी।
भारत में कोरोना से जंग लड़ने के लिए मोदी और उनकी कैबिनेट बड़े-बड़े वादे तो कर रही है। लेकिन जब जमीन पर नजर डालते है तो पता चलता है कि बचाव के मामूली उपकरण मास्क और सेनेटाइजर ही बाजार से गायब है। और जो बचे है उनके जरिए कालाबाजारी शुरू हो चुकी है। जिससे साफ पता चलता है कि हमारी सरकार कोरोना से जंग लड़ने के बजाएं इसको अपने लिए वरदान समझ रही है। और इसकी आड़ में मूल मुद्दों से ध्यान भटकाना चाहती है। अफ़सोस तब होता है जब कुछ पत्रकार भी यह कहते है अर्थवयवस्था छोड़ो कोरोना से बचो।
(मौहम्मद अली दिल्ली स्कूल ऑफ जर्नलिज्म के छात्र हैं )