नागरिकता संशोधन बिल (CAB) का विरोध अब बढ़ता दिखाई दे रहा है। भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में इसके खिलाफ हो रहे विरोध प्रदर्शनों के बाद अब दुनियाभर के तकरीबन हज़ार वैज्ञानिकों और स्कॉलर्स ने इसपर आपत्ति दर्ज करते हुए इसे वापस लिए जाने की मांग की है।

बिल को वापस लिए जाने की मांग करने वालों में तीन प्रमुख शोध संस्थानों के निदेशक- टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फनडामेंटल रिसर्च के संदीप त्रिवेदी, सैद्धांतिक विज्ञान के लिए अंतर्राष्ट्रीय केंद्र के राजेश गोपकुमार और सैद्धांतिक भौतिकी के लिए अंतर्राष्ट्रीय केंद्र के आतिश दाभोलकर शामिल हैं।

इनके साथ ही बिल का विरोध करने वाले स्कॉलर्स की सूची में अकादमिक जोया हसन और इतिहासकार हरबंस मुखिया के नाम भी शामिल हैं। इन लोगों ने एक बयान जारी कर कहा है कि ये बिल धर्म के आधार पर लोगों को नागरिकता प्रदान करता है, जो कि बेहद ख़तरनाक है। ये बिल पूरी तरह से मुस्लिम विरोधी है।

गांधी के प्रपौत्र ने CAB का किया विरोध, कहा- जो इस बिल का समर्थन कर रहे हैं वो ‘देशद्रोही’ हैं

बयान में कहा गया है कि ये बिल देश के बहुलतावादी ताने-बाने को नुकसान पहुंचाएगा। भारत का विचार जो स्वतंत्रता आंदोलन से निकला है और जैसा कि हमारे संविधान में निहित है, वह उस देश का है जो सभी धर्मों के लोगों के साथ समान व्यवहार करने की आकांक्षा रखता है।”

“प्रस्तावित बिल में नागरिकता के लिए एक मानदंड के रूप में धर्म का उपयोग इस इतिहास के साथ एक कट्टरपंथी विराम को चिह्नित करेगा और संविधान की मूल संरचना के साथ असंगत होगा।”

बयान में आगे कहा गया कि चूंकि बिल धर्म पर आधारित है, इसलिए हम इस बिल को तत्काल वापस लिए जाने और उचित कानून बनाए जाने की मांग करते हैं, जिसमें शरणार्थियों और अल्पसंख्यकों की चिंताओं को एक गैर-भेदभावपूर्ण तरीके से संबोधित किया जाए।

क्या है नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 (CAB)?

नागरिक संशोधन विधेयक 2019 के तहत सिटिजनशिप एक्ट 1955 में बदलाव का प्रस्ताव है। इस बिल में पाकिस्तान, बांग्लादेश एवं अफगानिस्तान में धार्मिक आधार पर उत्पीड़न के शिकार गैर मुस्लिम शरणार्थियों (जैसे हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों) को आसानी से भारत की नागरिकता दिए जाने का प्रावधान है।

अभी भारत की नागरिकता के लिए यहां कम से कम 11 सालों तक रहना जरूरी है। लेकिन इस बिल के पास होने के बाद पाकिस्तान, बांग्लादेश एवं अफगानिस्तान से आए गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को भारत की नागरिकता लेने के लिए 6 साल तक ही भारत में रहना होगा। लेकिन इस बिल में मुसलमानों के लिए ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here