देश में करोड़ों लोग सामाजिक और आर्थिक असामनता का शिकार हैं। पीएम मोदी के ‘न्यू इंडिया’ में तो बीते कुछ सालों से गैरबराबरी बेतहाशा बढ़ी है। प्यू रिसर्च सेंटर ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि पिछले एक साल में भारत में गरीबों की संख्या दोगुनी हो गई है।
रिपोर्ट के अनुसार एक दिन में 150 रूपए भी न कमा पाने वाले लोगों की संख्या बहुत तेज़ी से बढ़ी है। 6 करोड़ लोग एक साल के अंदर इस श्रेणी में आ गए हैं। अब देश में गरीबों की संख्या 13.4 करोड़ हो गई है।
‘आज तक’ की खबर के मुताबिक भारत में 1974 के बाद पहली बार न सिर्फ गरीबों की संख्या बढ़ी है, बल्कि 45 सालों बाद फिरसे मास पावर्टी वाला देश बन गया है।
ये आंकड़ें तब और चिंता का विषय बन जाते हैं जब अडानी और अंबानी जैसे उद्योगपतियों की संपत्ति में बेतहाशा बढ़ोतरी की खबरें आती रहती हैं।
एशिया के पहले सबसे अमीर शख्स हैं अंबानी और तीसरे सबसे अमीर हैं अडानी। नवंबर महीने में संपत्ति के 1800% से बढ़ने के बाद अडानी एशिया के सबसे अमीर शख्श बन गए थे। कोरोना महामारी से लाखों-लाख लोगों की नौकरियां चली गई, करोड़ों की ज़िन्दगी अस्त-व्यस्त हो गई लेकिन पीएम के करीबी उद्योगपतियों में सबसे अमीर बनने की होड़ है। देश में बढ़ती गैरबराबरी के बीच सरकार द्वारा कारोबारियों के लोन माफ़ कर देने वाली खबरें भी सरकार की मंशा पर सवाल खड़े करती हैं।
पेरिस स्थित वर्ल्ड इनइक्वलिटी लैब ने ‘वर्ल्ड इनइक्वलिटी इंडेक्स रिपोर्ट’ जारी कर बताया था कि भारत में सबसे संपन्न 1 प्रतिशत लोग देश की 22 प्रतिशत आय कमाते हैं। वहीं दूसरी तरफ कुल आबादी के आधे लोगों (50%) मात्र 13 प्रतिशत आय कमाते हैं।
देश की वयस्क जनसंख्या की औसत आय 2,04,200 रूपए है। देश की आधी आबादी 53,610 रूपए कमाती है जबकि शीर्ष 10 प्रतिशत आबादी इसका 20 गुना यानी 11,66,520 रूपए कमाती है। इन्हीं 10 प्रतिशत लोगों की आय देश की कुल आमदनी का 57 प्रतिशत है।
इस असमानता की एक वजह पूंजीवाद है। भारत में जब अर्थव्यवस्था पर सरकार ने सीधे तौर पर नियंत्रण करना कम कर दिया, तब देश में निजी संपत्ति तेज़ी से बढ़ी। रिपोर्ट के अनुसार निजी संपत्ति 1980 में 290% से बढ़कर 2020 में 560% हो गई।