Railways
साभार- दैनिक भास्कर

मोदी सरकार की “मज़बूती” मजबूर मज़दूरों की मुश्किलें दूर नहीं कर पा रही है। लॉकडाउन के शुरुआती 40 दिनों तक तो सरकार को होश भी नहीं था कि देश का एक बड़ा वर्ग है जो अपने घर से दूर, भूखा-प्यासा है। पहले प्रवासी मज़दूर सड़कों पर पैदल चलने से मर रहे थे, ट्रेन के नीचे आने से मर रहे थे, और अब वो ट्रेन में सफर करते हुए भी मर रहे हैं।

दैनिक भास्कर की स्टोरी के मुताबिक श्रमिक ट्रेनें कईं दिनों से देरी पर चल रही है जिसके कारण भूखे-प्यासे मज़दूरों की जान जा रही है। रिपोर्ट में लिखा है कि “दो दिन के बदले 9 दिन में पहुँच रही श्रमिक ट्रेनें, भूख, प्यास से एक दिन में 7 मौतें”। दावा है कि गुजरात से 16 मई को निकली दो ट्रेनें सिवान में 25 मई को पहुंची. इन्हें सिवान में 18 मई को पहुंचना था।

मुज़्ज़फरपुर में दो, दानापुर में एक, सासाराम में एक, गया में एक, बेगुसराई में एक, और जहानाबाद में एक प्रवासी की मौत हुई है। इरशाद नाम के छोटे बच्चे की भी गर्मी के कारण मौत हो गयी। ट्रेनों का अपने गंतव्य तक देरी से पहुंचने का कारण उनका रास्ता भटक जाना बताया जा रहा है। गुजरात से सिवान जाने वाली ट्रैन अपना ‘रास्ता भटक’ कर उड़ीसा के राउरकेला और बेंगलुरु पहुंच गईं। मतलब जो लोग पटरियों पर कटकर नहीं मर रहे, अब वो सफर करते समय भूखे-प्यासे मर रहे हैं।

हालाँकि, रेलवे मंत्रालय के प्रवक्ता के ट्विटर अकाउंट से ट्वीट कर मामले पर सफाई दी गयी है। उनका कहना है, “रिपोर्ट में बहुत सी गलतियां है और उसमें अधूरा सच बताया गया है। (गुजरात के) सूरत से निकली दो ट्रेनें 9 दिन नहीं बल्कि दो दिन के अंदर, 25 (मई) को पहुँच गयी थी। बच्चा बीमर था और दिल्ली से इलाज के बाद वापस आ रहा था. उसके मरने की वजह पोस्ट-मोर्टेम किये बिना नहीं बताई जा सकती।”

रेलवे मंत्रालय भलाइए इस एक ख़बर को झुठला रहा है लेकिन ट्रेनों की देरी को लेकर और भी खबरें आ रही हैं। 24 मई को NDTV ने गोवा से उत्तर प्रदेश के बलिया तक 26 घंटे देरी से आने वाली ट्रैन पर ख़बर की थी।

लॉकडाउन के कारण मजबूर प्रवासी मज़दूरों को बहुत कष्ट झेलना पड़ा है और उनकी कथित मज़बूत सरकार भी उनकी मदद नहीं कर पा रही। इससे पहले ट्रेनों में किराए वसूली को लेकर भी मोदी सरकार की बहुत आलोचना हुई थी। और अब ट्रैन की देरी से पहुंचने पर सवाल खड़े हो रहे हैं।

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