सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक अवमानना के मामले में दोषी ठहराए गए जाने-माने वकील और सामाजिक कार्यकर्ता प्रशांत भूषण पर सज़ा के रूप में 1 रुपये का जुर्माना लगाया है। इसके बाद प्रशांत भूषण ने कहा है कि वो ये फ़ाइन भर देंगे। इसी मामले को लेकर न्यूज़ पोर्टल ‘द वायर’ ने प्रशांत भूषण से बातचीत की। बोलता हिंदुस्तान ने इसी बातचीत के हिस्से को यहां जगह दी है। पढ़िए-

एंकरः प्रशांत भूषण आप एक रुपए का जुर्माना भरने को तैयार हो गए, आपको नहीं लगता कि इस तरह आपने अपना जुर्म कबूल कर लिया?

प्रशांतः नहीं ऐसा नहीं है। कोर्ट ने जो जुर्माना लगाया है, उसे तो भरना ही पड़ेगा। कोर्ट ने जेल भेजने के लिए कहा होता तो जेल जाना पड़ता। जुर्माना भरने का ये मतलब नहीं है कि मैंने कोई जुर्म किया है।

एंकरः प्रशांत कोर्ट की अवमानना का ये मामला एक व्यक्ति के ऊपर था, फिर ये मामला इतना बड़ा कैसे बन गया, कैसे ये समाजिक आंदोलन बन गया? इसका क्या महत्व है?

प्रशांतः अभिव्यक्ति की आज़ादी पर सरकार की तरफ़ से बहुत बड़ा हमला हो रहा था। ऐसे में लोगों ने देखा कि एक आदमी है, जो इसके ख़िलाफ़ खड़ा हो गया है और उसे दबाने की कोशिश की जा रही है। लोगों को लगा कि अभिव्यक्ति की आज़ादी को बचाने का मौका है। इस तरह से ये पूरे देश में फ्रीडम ऑफ़ स्पीच मूवमेंट बन गया।

एंकरः क्या बदल गया इस मुकदमे के बाद?

प्रशांतः इस मुकदमे के बाद लोगों में खुलकर बोलने की हिम्मत आई। लोगों को लगा कि जब ये बोल सकता है तो हम भी बोल सकते हैं। साथ ही इसके बाद इस बात पर फोकस आ गया कि सुप्रीम कोर्ट ने लोकतंत्र और मौलिक अधिकारों को बचाने के लिए क्या किया। मुझे उम्मीद है कि ये फोकस आने के बाद अब सुप्रीम कोर्ट का रवैया भी बदलेगा और सुधरेगा।

एंकरः क्या विरासत होगी जस्टिस अरुण मिश्रा की?

प्रशांतः इन्होंने बहुत सारे ऐसे पॉलिटिकल सेंसिटिव केस डील किए जिनमें सरकार का इंटेरेस्ट था। और सभी केसों में चाहे हरेन पांडेया केस हो, बिरला सहारा या लैंड एक्यूजेशन केस हो, सारे के सारे केसों में इन्होंने सरकार के हक़ में फैसले सुनाए। साथ ही अडानी के छह केस इन्होंने अडानी के हक़ में तय किए। जिसमें अडानी को 30 से 40 हज़ार करोड़ का फायदा कराया गया।

एंकरः क्या कमिटेड जुडिशरी का कांसेप्ट सिर्फ ख़ास जजों तक ही सीमित है, क्या अर्ण मिश्रा के जाने से फिर से हालात बहाल हो जाएंगे?

प्रशांतः सिर्फ एक जज से फर्क़ नहीं पड़ता, लेकिन माहौल जिस तरह का बन जाए। इंदिरा गांधी के समय बहुत स्ट्रांग सरकार थी और सभी जज डरे हुए थे। आज भी बहुत स्ट्रांग-फासीवादी सरकार है और सरकार के कामकाज के तरीके से जज डरे हुए हैं। ऐसा नहीं है कि सारे जज डरे हुए हैं, लेकिन ज़्यादातर जज डरे हुए हैं। न्यायपालिका को बेहतर बनाने के लिए इस डर को निकालना पड़ेगा।

एंकरः जजों को आख़िर किस बात का डर?

प्रशांतः जजों को ये डर रहता है कि कहीं सरकार उनसे नाराज़ होकर उनके ख़िलाफ़ कोई इंक्वायरी चला दे। सीबीआई-आईबी को उनके पीछे लगा दे, उनके रिश्तेदारों को परेशान करने लगे। रिटायरमेंट के बाद नौकरी न मिलने का डर भी होता है। जब सरकार बहुत ज़्यादा स्ट्रांग होती है तो ये देखा गया है कि न्यायपालिका थोड़ी सहम जाती है।

एंकरः क्या आपको लगता है कि आपने उस धारणा को तोड़ा है, जिसमें जजों को ख़ुदा समझा जाता है। ये समझा जाता है कि जजों से कुछ ग़लती नहीं हो सकती और जजों की कमियों पर बात नहीं की जा सकती।

प्रशांत: मुझे ऐसा लगता है कि मेरे केस की वजह से लोगों के मन से अवमानना का डर निकल गया है। किसी भी इंस्टीट्यूशन के सुधार के लिए उसकी कमियों पर चर्चा होनी ज़रूरी है और मुझे लगता है कि मेरे केस के बाद अब इस चर्चा का सिलसिला शुरु हो गया है।

इस दौरान प्रशांत भूषण ने देश के कई हाई कोर्ट्स की तारीफ़ भी की। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के मुकाबले हाई कोर्ट्स निष्पक्ष तरीके से अच्छा काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि डॉक्टर कफील खान और पिंजड़ा तोड़ की लड़कियों के मामले में हाई कोर्ट ने जिस तरह से फैसला सुनाया वो काबिले तारीफ है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की हालत जो इस वक्त है, ऐसी एमरजेंसी के वक्त भी नहीं थी।

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