उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र कांग्रेस पार्टी की महासचिव प्रियंका गांधी एक महत्वाकांक्षी कैंपेन ‘लड़की हूँ लड़ सकती हूँ’ चला रही हैं। यूपी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 40 प्रतिशत सीटों को महिला प्रत्याशियों के लिए आरक्षित किया है। पहली लिस्ट में कांग्रेस ने 125 विधानसभा सीटों में से 50 सीट महिला प्रत्याशियों को दिया है।

लेकिन दिलचस्प बात ये है कि जो कांग्रेस उत्तर प्रदेश में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को मुद्दा बनाकर चुनाव लड़ रही है, वही कांग्रेस पंजाब में सत्ता में रहकर भी महिलाओं की अनदेखी कर रही है! ऐसे में सवाल उठता है कि क्या ये कांग्रेस का दोहरा चरित्र नहीं है?

यूपी में महिलाओं के लिए एक तिहाई से अधिक सीटें आरक्षित करने वाली कांग्रेस पंजाब में महिलाओं को केवल 10 प्रतिशत ही सीट दे रही है। पंजाब कांग्रेस की पहली लिस्ट में 86 सीटों में से केवल 9 सीट ही महिला प्रत्याशियों को दिया गया है। इनमें से भी चार पूर्व मंत्री हैं।

ऐसी क्या वजह है जो एक ही पार्टी, दो राज्यों में एक समय हो रहे चुनावों में महिलाओं के लिए अलग तरीके से टिकट का बटवारा कर रही है?

हो सकता है कि पंजाब कांग्रेस उम्मीदवारों की अपनी अगली सूची में महिला प्रत्याशियों की संख्या बढ़ा दे। 10 प्रतिशत का आंकड़ा पार हो जाए।

इंडिया टुडे की खबर के अनुसार उत्तराखंड महिला कांग्रेस की अध्यक्ष सरिता आर्य ने बताया है कि पंजाब में 20 प्रतिशत सीटें महिला प्रत्याशियों के लिए आरक्षित रहेंगी। बावजूद इसके, ये आंकड़ा भी उत्तर प्रदेश में प्रियंका गाँधी द्वारा तय किए गए 40 प्रतिशत आंकड़ें से कम है।

जिस राज्य में कांग्रेस पहले से ही सत्ता में है, वहां महिलाओं को टिकट देने में इतनी कंजूसी क्यों? इस राज्य में 33 प्रतिशत का आंकड़ा भी पार क्यों नहीं किया जा रहा है?

वहीं दूसरी तरफ, जिस राज्य में कांग्रेस चुनवी लड़ाई में बहुत मज़बूत नहीं है वहां महिलाओं की भागीदारी के बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हैं।

2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में मात्र एक सीट मिली थी। प्रतिशत की बात करें तो 6.36 प्रतिशत वोट मिल पाया था। । 2017 विधानसभा चुनाव में अखिलेश और राहुल गाँधी ने मिलकर चुनाव लड़ा था। तब भी कांग्रेस को 6.25 प्रतिशत वोट ही वोट मिले थे, जिससे सात सीटों पर जीत हुई थी। जबकि गठबंधन की साथी समाजवादी पार्टी को 47 सीटें मिली थीं। दोनों ही पार्टियों के लिए वो शर्मनाक प्रदर्शन था।

2012 के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस का वोट प्रतिशत 11.63 था। पिछले कुछ वर्षों के आंकड़े बताते है कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस अप्रासंगिक हुई है। इस चुनाव में भी कांग्रेस की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। ज्यादातर सर्वे बता रहे हैं कि कांग्रेस उत्तर प्रदेश में मुख्य विपक्षी पार्टी भी नहीं बन सकती है।

अब सवाल उठता है कि जिस राज्य में कांग्रेस सीट जीतने और मुख्य कंटेस्टेंट की स्थिति में है वहां के चुनावों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व मुद्दा क्यों नहीं है? वहां उतनी ही सीटे आरक्षित क्यों नहीं की जा रही, जितनी उत्तर प्रदेश में की गई है? क्या पंजाब या अन्य राज्य के नेताओं को प्रियंका गाँधी के इस कैंपेन से सीख नहीं लेनी चाहिए? अगर खुद कांग्रेस पार्टी इस कैंपेन के लिए गंभीर नहीं दिखेगी तो अन्य पार्टियों पर दबाव कैसे बनेगा? अगर कांग्रेस महिलाओं के मुद्दे पर चुनाव लड़ना चाहती है तो उसे अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए।

बता दें कि पाँच राज्यों (उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा, मणिपुर) में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। तारीखों का ऐलान हो चुका है।

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