ब्राह्मणवाद की साजिशों को समझ कर, पिछड़े समाज को मुख्यधारा में ले आने के लिए, आरक्षण की शुरुआत करने वाले छत्रपति शाहूजी महाराज की आज जयंती है।
जातिवादी टीवी और अखबारों से इतर सोशल मीडिया पर शाहूजी महाराज को याद किया जा रहा है।
फेसबुक पर जयंत जिज्ञासू लिखते हैं-
भारत में आरक्षण के जनक, शिवाजी के वंशज व कोल्हापुर के राजा शाहूजी महाराज (26 जून 1874 – 6 मई 1922) की आज जयन्ती है। अपने पुरखे को शत-शत नमन!
“छत्रपति शाहू जी महाराज का जन्मदिन ईद-दीवाली की तरह मनाओ।”
– बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर
फेसबुक पर ही चंद्रभूषण यादव लिखते हैं:
हमारे पूर्वज शाहू जी महाराज ने पिछडों , दलितों व अल्पसंख्यकों के लिए शिक्षा, नौकरी, सम्मान का समुचित इंतजाम किया।
उन्होंने इनके लिए स्कूल, छात्रावास बनवाया। शुद्रों को राज्य में पदाधिकारी बनाया।
1902 में शाहू जी महाराज ने पिछडों को 50% आरक्षण प्रदान कर उन्हें सर्वप्रथम राजकीय सेवा से जोड़ने का ऐतिहासिक कार्य किया।
विधवा विवाह, हर गाँव में स्कूल, अंतरजातीय विवाह को क़ानूनी मान्यता, दलित-पिछडों के लिए अस्पताल का इंतजाम किया।
दलित होटल खुलवाकर शाहू जी ने खुद भोजन कर उसका उद्घाटन किया।
21 मार्च 1920 को कोल्हापुर रियासत के मारा गाँव में बाबा साहब अम्बेडकर की अध्यक्षता में हुए दलित सम्मेलन में शाहू जी महाराज ने कहा था, “भाइयो, आज आपको अम्बेडकर के रूप में अपना रक्षक व नेता मिल गया है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि डॉ. अम्बेडकर आपकी गुलामी की बेड़ियाँ तोड़ देंगे और एक समय आएगा जब डॉ. अम्बेडकर अखिल भारतीय स्तर पर प्रथम श्रेणी के नेता के रूप में चमकेंगे”।
शाहू जी महाराज के इन कार्यों से ब्राह्मणवादी कुपित रहते थे। वे शाहूजी महाराज को अपना दुश्मन समझने लगे थे।
एक दिन राज पुरोहित ने पर्व स्नान के समय वेद मन्त्र उच्चारण से इंकार कर दिया और कारण पूछने पर कहा, “आप शूद्र हैं और शूद्र को वेद मन्त्र सुनने का अधिकार नहीं है।”
कोल्हापुर के शंकराचार्य ने भी पुरोहितों की बात का समर्थन किया। शाहूजी ने राज पुरोहित को नौकरी से निकाल कर उसे राज पुरोहित के नाते प्राप्त जमीन-जायदाद जब्त कर लिया।
तथाकथित शंकराचार्य पूना भाग गया। शाहू जी महाराज ने जगतगुरु का नया पद सृजित कर इस पद पर ग्रैजुएट मराठा युवक बेनाडीकर सदाशिव राव पाटिल को मनोनीत कर ब्राह्मणवाद की चूलें हिला दी।