ईवीएम मामले पर चुनाव आयोग बुरी तरह से फंसता हुआ नजर आ रहा है। लोकतांत्रिक सुधार के लिए सक्रिय एवं बेहद मशहूर संस्था एडीआर ने सुप्रीम कोर्ट में ईवीएम की मिलान न होने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है।
दायर की गई याचिका में संस्था ने कहा है कोर्ट निर्देश दे कि चुनाव आयोग वोटों की गिनती करने के पहले पर्चियों के मिलान का बिल्कुल सटीक आंकड़ा जारी करे। एशोसिएशन फ़ॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म नाम की संस्था चुनाव सुधारों के लिए काम करती है। यही वह संस्था है जो हर साल सभी दलों को मिलने वाले चंदे और सभी दलों के उम्मीदवारों पर लगे आपराधिक केसों पर विश्लेषण करके रिपोर्ट जारी करती है।
दरअसल ये गंभीर मामला है कि लोकसभा चुनाव के बाद VVPAT और पड़े हुए वोटों की संख्या का मिलान नहीं हो सका। जब इस पर द क्विंट नाम की वेबसाइट ने रिपोर्ट किया और दावा किया कि 300 से ज्यादा लोकसभा सीटों पर वीवीपीएटी और पड़े हुए वोटों की संख्या का मिलान नहीं हो सका है तो चुनाव आयोग द्वारा कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया गया। यहां तक कि, बाद में देखा गया की चुनाव आयोग की वेबसाइट से ज्यादातर आंकड़े गायब हो गए। ऐसे में चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठने लगे।
भले ही नई सरकार का गठन हो गया और अब लगभग 6 महीने सरकार चल चुकी है लेकिन चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर प्रश्न बना हुआ है।
ऐसे हालात को लोकतंत्र के लिए खतरनाक बताते हुए समाजवादी पार्टी के नेता एवं लखनऊ-उन्नाव से एमएलसी सुनील सिंह यादव ने लिखा- चुनाव सुधार के लिये काम करने वाली संस्था #ADR का दावा है कि 370 लोकसभा सीटों पर वोटों की गिनती में भारी गड़बड़ी हुई है। 347 सीटों पर कुल पड़े वोट व #EVM में वोट की संख्या में काफी अंतर है। चुनाव आयोग ही अगर सत्ता का पहरुआ बन जाएगा तो लोकतंत्र कहाँ बचेगा? #evm_हटाओ_देश_बचाओ
चुनाव सुधार के लिये काम करने वाली संस्था #ADR का दावा है कि 370 लोकसभा सीटों पर वोटों की गिनती में भारी गड़बड़ी हुई है। 347 सीटों पर कुल पड़े वोट व #EVM में वोट की संख्या में काफी अंतर है। चुनाव आयोग ही अगर सत्ता का पहरुआ बन जाएगा तो लोकतंत्र कहाँ बचेगा? #evm_हटाओ_देश_बचाओ
— Sunil Singh Yadav (@sunilyadv_unnao) November 20, 2019
अगर लगभग साढ़े तीन सौ लोकसभा सीटों पर ईवीएम में पड़े वोटों की संख्या और पर्चियों की संख्या में अंतर है तो सच में यह बेहद खतरनाक स्थिति है। इस देश के नागरिकों को मिले मताधिकार के प्रभाव को कम किया जा रहा है।
चुनावों में हारना जीतना राजनीतिक दलों के लिए आम बात होती है लेकिन एक स्वस्थ लोकतांत्रिक देश के लिए यह बिल्कुल भी आम बात नहीं होनी चाहिए कि उसकी एक संवैधानिक संस्था की निष्पक्षता पर बार-बार सवाल उठ रहे हैं।
यह भी बिल्कुल आम बात नहीं होनी चाहिए कि करोड़ों लोगों के मत के लेखा-जोखा की जवाबदेही से बचा जा रहा है।